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________________ ४, २, ४, १५७.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्तं ___ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । एत्थ वि लद्धिअपज्जत्तयस्स बादरेइंदियउक्कस्सपरिणामजोगो घेत्तव्यो, जहण्णुक्कस्सवीणादो बादरेइंदियउक्कस्सपरिणामजोगो णिव्वत्तिअपज्जत्तयस्सं उक्कस्सएयंताणुवड्डिजोगं पेक्खिदूण एदस्स असंखेज्जगुणत्तुवलंभादो। सुहमेइंदियपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेज्जगुणो॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । एत्थ सुहुमेइंदियणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स जहण्णपरिणामजोगो घेत्तव्यो । बादरेइंदियपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेज्जगुणो॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । एत्थ बादरेइंदियणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स जहण्णपरिणामजोगो घेत्तव्यो । सुहुमेइंदियपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ जोगो असंखेज्जगुणो।। को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। बादरेइंदियपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ जोगो असंखेज्जगुणो ॥ १५७ ॥ गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है। यहां भी लब्ध्यपर्याप्तक बादर एकेन्द्रियके उत्कृष्ट परिणामयोगको ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि, जघन्य व उत्कृष्ट वीणाके अनुसार बादर एकेन्द्रिय निर्वृत्यपर्याप्तकके उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धियोगको देखते हुये बादर एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तका यह उत्कृष्ट परिणामयोग असंख्यातगुणा पाया जाता है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य योग उससे असंख्यातगुणा है ।। १५४ ॥ गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है। यहां सूक्ष्म एकेन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तकके जघन्य परिणामयोगको ग्रहण करना चाहिये। बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य योग उससे असंख्यातगुणा है ॥ १५५॥ गुणकार क्या है । गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है। यहां बादर एकेन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तकके जघन्य परिणामयोगको ग्रहण करना चाहिये। उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकका उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है ॥ १५६ ॥ गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । उससे बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकका उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है ॥ १५७ ।। १ भ-आ-काप्रतिषु णिव्वत्तिपज्जत्तयस्स' इति पाठः। १ प्रतिषु ' उक्कस्सजोगो ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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