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छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, १५०. असण्णिपंचिंदियअपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेज्जगुणो ॥ १५०॥
को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । सण्णिपंचिंदियअपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेज्जगुणो॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखज्जदिभागो । सुहुमेइंदियअपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ जोगो असंखेज्जगुणो॥
को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। एत्थ सुहुमेइंदियअपज्जत्ता दुविहा लद्धिअपज्जत्त-णिव्वत्तिअपज्जत्तभेएण । तत्थ केसिमपज्जत्ताणमुक्कस्सजोगो घेप्पदे ? सुहुमेइंदियलद्धिअपज्जत्ताणमुक्करसपरिणामजोगो घेत्तव्यो। कुदो ? णिव्वत्तिअपज्जत्ताणमुक्कस्सजोगो णाम उक्कस्सएयंताणुवड्डिजोगो, तत्तो एदस्स उक्कस्सपरिणामजोगस्स असंखेज्जगुणत्तदसणादो । कुदो णव्वदे ? जहण्णुक्कस्सवीणादो।
बादरेइंदियअपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ जोगो असंखेज्जगुणो ॥ १५३॥
उससे असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकका जघन्य योग असंख्यातगुणा है ॥ १५ ॥ गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है। उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकका जघन्य योग असंख्यातगुणा है ॥ ११ ॥ गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है। उससे सूक्ष्म एकेद्रिय अपर्याप्तकका उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है ॥ १५२ ॥ गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है।
शंका- यहां लब्ध्यपर्याप्तक और निर्वृत्त्यपर्याप्तकके भेदसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तक दो प्रकार हैं। उनमें कौनसे अपर्याप्तकोंका उत्कृष्ट योग यहां ग्रहण किया जाता है ?
समाधान- सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकोंके उत्कृष्ट परिणाम योगको यहां ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि, निवृत्त्यपर्याप्तकोंका उत्कृष्ट योग जो उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धि योग है उससे इसका उत्कृष्ट परिणामयोग असंख्यातगुणा देखा जाता है।
शंका- यह कहांसे जाना जाता है ? समाधान-यह जघन्योकृष्ट वीणासे जाना जाता है । उससे बादर एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है ।।१५३॥ , ताप्रतौ ' दुविहा । लद्धि- ' इति पाठः ।
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