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४, २, ४, १४९. ] dr महाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्तं
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मेइंदियलद्धिअपज्जत्तउववादजोगट्ठाणेसु असंखेज्जजोगगुणहाणीणं संभवादो । तत्थतणणाणागुणहाणिस लागाओ विरलिय विगुणिय अण्णोष्णन्मत्थे कदे गुणगाररासी होदिति वृत्तं होदि ।
बीइंदियअपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेज्जगुणो ॥
को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । कारणं पुत्रं व परूवेदव्वं । सव्वत्थ लद्धिअपज्जत्तयस्स पढमसमयं तन्भवत्थस्स विग्गहगदीए वट्टमाणस्स जहण्णओ उववाद जोगो घेत्तव्वो ।
रासी ।
तीइंदियअपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेज्जगुणो ॥
को गुणमारो ? हेट्ठिमणाणागुणहाणि सलागाओ विरलिय विगुणिय अण्णोण्णब्भत्थचउरिंदियअपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेज्जगुणो ॥१४९ को गुणगारो ? जोगगुणगारो ।
पर्याप्तकके जघन्य उपपादयोग से अधस्तन सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त के उपपादयोगस्थानों में असंख्यात योगगुणहानियोंकी सम्भावना है। वहांकी नानागुणहानिशलाकाओंका विरलन करके दुगुणा कर परस्पर गुणा करनेपर गुणकार राशि होती है, यह अभिप्राय है ।
उससे द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकका जघन्य योग असंख्यातगुणा है ।। १४७ ॥
गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । इसके कारणकी प्ररूपणा पहिलेके ही समान करना चाहिये । सब जगह उस भवमें स्थित होनेके प्रथम समय में रहनेवाले व विग्रहगतिमें वर्तमान ऐसे लब्ध्यपर्याप्तकके जघन्य उपापादयोगको ग्रहण करना चाहिये ।
उससे त्रीन्द्रिय अपर्याप्तकका जघन्य योग असंख्यातगुणा है ॥ १४८ ॥
गुणकार क्या है ? अधस्तन नानागुणहानिशलाकाओंका विरलन करके द्विगुणित कर परस्पर गुणा करनेपर जो राशि उत्पन्न हो वह यहां गुणकार है ।
उससे चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तकका जघन्य योग असंख्यातगुणा हैं ॥ १४९ ॥ गुणकार क्या है ? गुणकार यहां योगगुणकार अर्थात् पल्योपमका असंख्यातवां
भाग है ।
१ अ आ-काप्रतिषु ' पदम समयस्स
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' इति पाठः ।
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