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चूलिया
40*एचो जं भणिदं 'बहुसो बहुसो उक्कस्साणि जोगट्टाणाणि गच्छदि जहण्णाणि च' एत्थ अप्पाबहुगं दुविहं जोगप्पाबहुगं पदेसअप्पाबहुगं चेव ॥ १४४॥
तीहि अणियोगद्दारहि वेयणादव्वविहाणे वित्थोरेण परूविय समत्ते संते किमट्ठमुवरिमो गयो' वुच्चदे ? ण, उक्कस्ससामित्तं भण्णमाणे 'बहुसो बहुसो उक्कस्साणि जोगट्टाणाणि गच्छदि' त्ति भणिदं; जहण्णसामित्ते वि भण्णमाणे 'बहुसो बहुसो जहण्णाणि जोगट्ठाणाणि गच्छदि ' त्ति भणिदं । एदेसिं दोण्हं पि सुत्ताणमत्थो ण सम्ममवगदी । तदो दोसु वि सुत्तेसु सिस्साणं णिच्छयजणणमिमा अप्पाबहुगादिपरूवणा जोगविसया कीरदे । वेयणादव्वविहाणस्स चूलियापरूवण8 उवरिमो गंधो आगदो त्ति वुत्तं होदि । का चूलिया ? सुत्तसूइदत्थपयासणं चूलिया णाम | एत्थ जोगस्स थोव-बहुत्ते
इससे पूर्वमें जो यह कहा गया है कि " बहुत बहुत वार उत्कृष्ट योगस्थानोंको प्राप्त होता है और बहुत बहुत वार जघन्य योगस्थानोंको भी प्राप्त होता है" यहां अल्पबहुत्व दो प्रकार है- योगअल्पबहुत्व और प्रदेशअल्पबहुत्व ॥ १४४॥
शंका- तीन अनुयोगद्वारोंसे वेदनाद्रव्यविधानकी विस्तारसे प्ररूपणा करके उसके समाप्त हो जानेपर फिर आगेका ग्रन्थ किसलिये कहा जाता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, उत्कृष्ट स्वामित्वका कथन करते समय 'बहुत बहुत वार उत्कृष्ट योगस्थानोंको प्राप्त होता है। ऐसा कहा है; जघन्य स्वामित्वका भी कथन करते हुए 'बहुत बहुत वार जघन्य योगस्थानोंको प्राप्त होता है ' ऐसा कहा गया है। इन दोनों ही सूत्रोंका अर्थ भली भांति नहीं जाना गया है, इसलिये दोनों ही सूत्रोंके विषयमें शिष्योंको निश्चय कराने के लिये यह योगविषयक अल्पबहुत्व आदिकी प्ररूपणा की जाती है। अभिप्राय यह कि वेदनाद्रव्यविधानकी चूलिकाके प्ररूपणार्थ आगेके प्रन्थका अवतार हुआ है।
शंक- चूलिका किसे कहते हैं ? समाधान-सूत्रसूचित अर्थके प्रकाशित करनेका नाम चूलिका है। यहां योगविषयक अल्पबहुत्वके ज्ञात हो जानेपर क्षपितकौशिक और गुणित
१ अ-आ-काप्रतिधु ' उवरियो ' इति पाठः।
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