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________________ १९१] छक्खंडागमे वेयणाखंड [१, २, ४, १५.. णामा-गोदवेंदणाओ दव्वदो उक्कस्सियाओ दो वि तुल्लाओ असंखेज्जगुणाओ ॥ १४०॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागो । कुदो १ वेदणीयदव्वेण दिवड्डगुणहाणिगुणिदेगेइंदियसमयपबद्धमत्तेण जोगगुणगारगुणिददिवड्ढगुणहाणीए गुणिदेगेइंदियसमयपबद्धमत्ते' गामा-गोदुक्कस्सदव्वे भागे हिदे पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागुवलंभादो । णाणावरणीय-दसणावरणीय-अंतराइयवेयणाओ दव्वदो उक्कस्सियाओ तिण्णि वि तुल्लाओ विसेसाहियाओ ॥ १४१ ॥ सुगममेदं । मोहणीयवेयणा दव्वदो उक्कस्सिया विसेसाहिया ॥ १४२ ॥ एदं पि सुगमं । वेयणीयवेयणा दव्वदो उक्कस्सिया विसेसाहिया ॥ १४३ ॥ [एदं पि सुगमं ।] एवमप्पाबहुअं सगंतोखित्तगुणगाराणियोगद्दारं समत्तं । द्रव्यसे उत्कृष्ट नाम व गोत्रकी वेदनायें दोनों ही तुल्य होकर उससे असंख्यातगुणी हैं ॥ १४०॥ गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि डेढ़ गुणहानिगुणित एकेन्द्रियके समयप्रबद्ध मात्र वेदनीयके द्रव्यका योगगुणकारसे गुणित डेढ़ गुणहानि द्वारा एकेन्द्रियके समयप्रबद्धको गुणित करनेपर जो । उतने मात्र नाम व गोत्रके उत्कृष्ट द्रव्यमें भाग देनेपर पल्योपमका असंख्यातवां भाग पाया जाता है। द्रव्यसे उत्कृष्ट ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तरायकी वेदनायें तीनों ही तुल्य व उनसे विशेष अधिक हैं ॥ १४१ ॥ यह सूत्र सुगम है। द्रव्यसे उत्कृष्ट मोहनीयकी वेदना उनसे विशेष अधिक है ॥ १४२ ॥ यह सूत्र भी सुगम है । द्रव्यसे उत्कृष्ट वेदनीयकी वेदन! उससे विशेष अधिक है ॥ १४३॥ [यह सूत्र भी सुगम है।] इस प्रकार गुणकारानुयोगद्वारगर्भित अल्पबहुत्व समाप्त हुभा। स-आ-कामति 'मेरोण' इति पारः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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