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१, २, ४, १३९ ] वेयणमहाहियारे वेयणदश्वविहाणे अप्पाबहुअं
___णामा-गोदवेदणाओ दबदो जहणियाओ [ दो वि तुल्लाओ] असंखेज्जगुणाओ ॥ १३६ ॥
को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। कुदो ? आउअस्स उक्कस्सदव्वेण किंचूणदुगुणुक्कस्संबंधगद्धाए जोगगुणगारेण च गुणिदेगसमयपबद्धमत्तेण दिवड्डगुणहाणिगुणिदेगसमयपबद्धमेत्तणामा-गोदजहण्णदव्वे भागे हिदे पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागुवलंभादो ।
णाणावरणीय-दंसणावरणीय-अंतराइयवेदणाओ दव्वदो जहणियाओ तिणि वि तुल्लाओ विसेसाहियाओ ॥ १३७ ॥
कारणं सुगमं । मोहणीयवेयणा दव्वदो जहाणिया विसेसाहिया ॥ १३८ ॥ सुगममेदं । वेदणीयवेयणा दव्वदो. जहणिया विसेसाहिया ॥ १३९ ॥ एदं पि सुगम ।
द्रव्यसे जघन्य नाम व गोत्र कर्मकी वेदनायें दोनों ही तुल्य होकर उससे असंख्यातगुणी हैं ॥१३६ ॥
गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि, कुछ कम दुगुने उत्कृष्ट बन्धककाल और योगगुणकारले गुणित एक समयप्रबद्ध मात्र आयु कर्मके उत्कृष्ट द्रव्यका डेढ़ गुणहानिगुणित एक समयप्रबद्ध मात्र नाम व गोत्र कर्मके जघन्य द्रव्यमें भाग देनेपर पल्योपमका असंख्यातवां भाग पाया जाता है।
द्रव्यसे जघन्य ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तरायकी वेदनायें तीनों ही तुल्य व उनसे विशेष आधिक हैं ॥ १३७ ॥
इसका कारण सुगम है । द्रव्यसे जघन्य मोहनीयकी वेदना उनसे विशेष आधिक है ॥ १३८॥ यह सूत्र सुगम है । द्रव्यसे जघन्य वेदनीयकी वेदना उससे विशेष अधिक है ॥ १३९ ॥ यह सूत्र भी सुगम है।
, ताप्रतिपाठोऽयम् । अ-आ-काप्रतिषु — कारण सुगमं वेदणीयवेयणा दव्वदो जहणियां बिसे- - साहिया सुगममेदं मोहणीयवेयणा दव्वदो जहणिया विसेसाहिया एवं पि सुगम इति पाठः। ७.वे. ५..
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