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________________ ३९२] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, १३३. पदिददवं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागेण खंडिदे तत्थ एगखंडपमाणत्तादो । वेदणीयवेयणा दव्वदो उक्कसिया विसेसाहिया ॥ १३३ ।। केत्तियमेत्तो विसेसो ? हेटिमदव्वमावलियाए असंखज्जदिभागेण खंडिदे तत्थ एगखंडमेत्तो । कुदो ? साभावियादो । जहण्णुक्कस्सपदेण सव्वत्थोवा आउदधेयणा दव्वदो जहणिया ॥ १३४ ॥ कुदो ? अंगुलस्स असंखेज्जीदमागेण दीवसिहाए ओवट्टिय किंचूणं करिय जहण्णाउअबंधगद्वाए ओवट्टिदेण एगसमयपबद्धे भागे हिदे तत्थ एगभागत्तादो। सा चेव उक्कसिया असंखेज्जगुणा ॥ १३५॥ को गुणगारो ? अंगुलस्स असंखेजदिभागो। कुदो ? दीवसिहासरूवेण हिदजहण्णदवेण एगसमयपबद्धमंगुलस्स असंखेजदिभागेण खंडिदेगखंडमेत्तेण संखेज्जावलियगुणिदसमयपबद्धमेत्तुक्कस्सदव्वे भागे हिदे अंगुलस्त असंखेज्जदिभागुवलंभादो । कोड़ाकोड़ि सागरोधमोंमें पतित द्रव्यको पल्योपमके असंख्यातवें भागसे खण्डित करनेपर उससे वह एक खण्डके बराबर है । द्रव्यकी अपेक्षा उत्कृष्ट वेदनीयकी वेदना उससे विशेष अधिक है ॥ १३३॥ विशेषका प्रमाण कितना है ? अधस्तन द्रव्यको आवलीक असंख्यातवें भागसे खण्डित करनेपर उससे वह एक खण्ड प्रमाण है, क्योंकि, ऐसा स्वभाव है । ___ जघन्योत्कृष्ट पदसे द्रव्यकी अपेक्षा जघन्य आयु कर्मकी वेदना सबसे स्तोक है ॥ १३४॥ कारण यह कि वह दीपशिखासे अपवर्तित करके कुछ कम कर फिर जघन्य आयुबन्धककाल से अपवर्तित किये गये ऐसे अंगुलके असंख्यातवे भागका एक समयप्रबद्ध में भाग देनेपर उसमें से एक भाग प्रमाण है। उसकी ही उत्कृष्ट वेदना उससे असंख्यातगुणी है ॥ १३५ ॥ गुणकार क्या है ? गुण कार अंगुलका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि, एक समयप्रबद्धको अंगुलके असंख्यातवें भागसे खाण्डत करनेपर उसमें एक खण्ड मात्र जो दीपशिखा स्वरूपसे स्थित जघन्य द्रव्य है उसका संख्यात आवलियोंसे गुणित समयप्रबद्ध मात्र उसके ही उत्कृष्ट द्रव्यमें भाग देनेपर अंगुल का असंख्यातवां भाग उपलब्ध होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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