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________________ [ ३९१ मोटा १, २, ४, १३२.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे अप्पाबहुअं [ समयपबद्धेहि आउअसंबंधएहि णामस्स गोदस्स वा दिवड्डगुणहाणिमेत्त ] समयपबद्धेसु ओवट्टिदेसु पलिदोवमस्स असंखेजदिमागुवलंभादो । णाणावरणीय-दसणावरणीय-अंतराइयवेयणाओ दबदो उक्कस्सियाओ तिणि वि तुल्लाओ विसेसाहियाओ ॥ १३१ ॥ केत्तियमेत्तो विसेसो ? हेट्ठिमदव्वे आवलियाए असंखेज्जदिभागेण खंडिदे तत्थ एगखंडमेत्तो । कुदो ? साभावियादो । तिण्णं घादिकम्माणं पदेसस्स किमढे तुल्लदा ? ण, तुल्लायव्वयत्तादो । तं पि कुदो ? साभावियादो।। मोहणीयवेयणा दव्वदो उक्कस्सिया विसेसाहिया ॥ १३२ ॥ केत्तियमेत्तो विसेसो ? हेट्ठिमदव्वे आवलियाए असंखेज्जदिभागेण खंडिदे तत्थ एगखंडमेत्तो । कुदो ? साभावियादो । तीससागरोवमकोडाकोडीसु हिदीसु ट्ठिदपदेसपिंडादो उरिमदससागरोवमकोडाकोडीसु हिदपदेसपिंडो अप्पहाणो, तीसकोडाकोडीसु सागरोवमेसु गुणहानि मात्र समयप्रबद्धोंको अपवर्तित करनेपर पल्योपमका असंख्यातवां भाग पाया जाता है। द्रव्यसे उत्कृष्ट ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय व अन्तराय कौकी वेदनायें तीनों ही आपसमें तुल्य होकर उनसे विशेष अधिक हैं ॥ १३१ ॥ विशेष कितना है ? अधस्तन द्रव्यको आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करनेपर उसमेंसे वह एक खण्ड मात्र है, क्योंकि, ऐसा स्वभाव है। शंका- तीन घातियां कौके प्रदेशकी तुल्यता किसलिये है ? । समाधान- नहीं, क्योंकि, इन तीनोंके प्रदेशोंका आय व व्यय समान है। शंका- वह भी क्यों है? समाधान- क्योंकि, ऐसा स्वभाव है। द्रव्यकी अपेक्षा उत्कृष्ट मोहनीयकी वेदना उनसे विशेष अधिक है ॥ १३२ ॥ विशेषका प्रमाण कितना है ? विशेषका प्रमाण अधस्तन द्रव्यको आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करने पर उसमेंसे एक खण्ड मात्र , क्योंकि, ऐसा स्वभाव है। तीस कोड़ाकोड़ि सागरोपम स्थितियों में स्थित प्रदेशपिण्डसे ऊपर दस कोडाकोड़ि सागरोपमों में स्थित प्रदेशपिण्ड अपंधान है, क्योंकि, तीस १ कोष्ठकस्थोऽयं पाठ: सर्वास्वेव प्रतिषु द्विारमुपलभ्यते । २ अ-आ.काप्रतिषु 'तुल्लादो' इति पाठः । ३ अ-आ-काप्रतिषु — कोडाकोडीस द्विदपवेसपिंडो सागरोवमेस', ताप्रती · कोडाकोडीसु [ द्विदपदेसपिंडो (!)] सागरोवमेन ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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