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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ १, २, १, १२९.
सादावेदणीयसरूवेण परिणदाए सह सादावेदणीयचरिमगोवुच्छाए जह्मणत्तब्भुवगमादो । ण च सादावेदणीयचरिमगोवुच्छाए चेव वेदणीयजहण्णसामित्तं होदि त्ति णियमो, असादावेदणीयचरिमगोवुच्छाए वि जहण्णसामित्ते संते विरोहाभावादो। सजोगिगुणसेडिणिज्जराए गलिददव्वमप्पहाणं, अजोगिचरिमसमयगुणसेडिगोवुच्छदब्वे असंखज्जपलिदोवमपढमवग्गमूलेहि खंडिदे तत्थ एगखंडपमाणत्तादो।
उक्कस्सपदेण सव्वत्थोवा आउववेयणा दव्वदो उक्कस्सिया • ॥ १२९॥
कुदो ? उक्कस्साउअंबंधगद्धामेत्तसमयपबद्धपमाणत्तादो । पगदि-विगदिसरूवेण णट्ठदव्वमप्पहाणं, आवलियाए असंखेज्जदिमागमेत्तसमयपबद्धपमाणत्तादो ।
___णामा-गोदवेदणाओ दव्वदो उक्कस्सियाओ [दो वि तुल्लाओ] असंखेज्जगुणाओ॥ १३० ॥
को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । कुदो ? संखेज्जावलियमेत्त
साथ सातावेदनीयकी चरम गोपुच्छाके द्रव्य को जघन्य स्वीकार किया गया है। दूसरे, सातावेदनीयकी चरम गोपुच्छाके ही वेदनीयका जघन्य स्वामित्व होता है, ऐसा नियम भी नहीं है, क्योंकि, असातावेदनीयकी चरम गोपुच्छामें भी जघन्य स्वामित्वके होनेमें कोई विरोध नहीं है।
सयोग केवली सम्बन्धी गुणश्रेणिनिर्जरा द्वारा नष्ट हुआ द्रव्य यहां गौण है, क्योंकि, अयोग केवलीके चरम समय सम्बन्धी गुणश्रेणिगोपुच्छाके द्रव्यको पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलों द्वारा खण्डित करनेपर उसमेंसे वह एक खण्ड प्रमाण है।
उत्कृष्ट पदकी अपेक्षा द्रव्यसे उत्कृष्ट आयुकी वेदना सबसे स्तोक है ॥ १२९ ॥
इसका कारण यह है कि वह उत्कृष्ट आयुबन्धककालके जितने समय हैं उसने मात्र समयप्रबद्ध प्रमाण है। प्रकृति व विक्रति स्वरूपसे निर्णि अप्रधान है, क्योंकि, वह आवलीके असंख्यातवें भाग मात्र समयप्रबद्धौके बराबर है।
द्रव्यसे उत्कृष्ट नाम व गोत्रकी वेदनायें दोनों ही समान होकर असंख्यातगुणी हैं ॥ १३०॥
गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि, संख्यात आवलियोंके बराबर आयु सम्बन्धी समयप्रबद्धोंसे नाम व गोत्रके डेढ़
१ अ-आप्रत्योः दवादो' इति पाठः । २ का-ताप्रयोः कुदो दोउकस्साउअ' इति पाठः।
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