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________________ ३८६ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [ १, २, ४, १२५. उक्कस्सादिपडिसेहफलो ] जहण्णणिद्दसों । उवरि वुच्चमाणजहण्णदव्वेहिंतो एदमाउअदव्वं थोवमिदि जाणावणटुं सव्वत्थोवेत्ति वुत्तं । कधं सव्वत्थोवत्तं ? अंगुलस्स असंखेजदिभागेण दीवसिहाए ओवट्टिय' किंचूणीकदेण पुणो जहण्णाउअबंधगद्धाए ओवट्टिदेण एगसमयपबद्धे भागे हिदे तत्थ एगभागमेत्तत्तादो । ___णामा-गोदवेदणाओ दव्वदो जहणियाओ दो वि तुल्लाओ असंखेज्जगुणाओ॥ १२५ ॥ को गुणगारो ? अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो असंखेजाओ ओसप्पिणी-उस्सप्पिणीओ। कुदो १ पलिदोवमस्स असंखेन्जदिमागेण गुणिदअंगुलस्स असंखेजदिभागत्तादो। अजोगिचरिमसमए जहण्णदव्वम्मि पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्तसमयपबद्धा णामा-गोदाणमत्थि त्ति कधं णव्वदे ? खविदकम्मसियस्स दिवड्डगुणहाणिमेत्ता एइदियसमयपबद्धा अत्थि त्ति भादिका प्रतिषेध करनेके लिये ] जघन्य पदका निर्देश किया है। आगे कहे जानेवाले काँके जघन्य द्रव्यकी अपेक्षा यह आयु कर्मका द्रव्य स्तोक है, इसके शापनार्थ 'सबसे स्तोक है' ऐसा कहा है। शंका-वह सबसे स्तोक कैसे है। समाधान-कारण यह कि आयु कर्मका जघन्य द्रव्य, दीपशिखासे अपवर्तित कर कुछ कम करके फिर जघन्य आयुबन्धककालसे अपवर्तित किये गये ऐसे अंगुलके असंख्यातवें भागका एक समयप्रबद्ध में भाग देनेपर जो एक भाग लब्ध होता है, इतना मात्र है। द्रव्यसे जघन्य नाम व गोत्रकी वेदनायें दोनों ही आपसमें तुल्य होकर उससे असंख्यातगुणी हैं ॥ १२५ ।। . गुणकार क्या है ? गुणकार अंगुलका असंख्यातवां भाग है जो असंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणियोंके समयों के बराबर हैं, क्योंकि, वह पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुणित अंगुलके असंख्यातवे भाग प्रमाण है। शंका- अयोगीके अन्तिम समयमें जो जघन्य द्रव्य होता है उसमें नाम व गोत्रके समयप्रबद्ध पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र हैं, यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-क्षपितकर्माशिकके डेढ़ गुणहानि मात्र एकेन्द्रिय सम्बन्धी समयप्रबद्ध हैं, इस प्रकारके गुरुके उपदेशसे वह जाना जाता है। १ तापतौ ' खेताविपडिसेहफलो जहण्ण ( बब्व ) णिदेसो' इति पाठः । २ अ आ-काप्रतिषु · ओवडिया' पति पाठक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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