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४, २, ४,१२४.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे अप्पाबहुअं ३८५
(अप्पाबहुए ति तत्थ इमाणि तिण्णि अणियोगदाराणि जहण्णपदे उक्कस्सपदे जहण्णुक्कस्सपदे ॥ १२३ ॥
____ अप्पाबहुए त्ति एत्थं जो इदि-सहो [सो] अप्पाबहुअस्स सरूवपयत्यत्तजाणावणणिमित्तं पउत्तो, इदरेहि अणियोगदारोहितो ववच्छेदह्र वा । तत्थ तिण्णि अणियोगद्दाराणि जहण्ण-उक्कस्स-जहण्णुक्कस्सपदप्पाबहुगभेदेण । तत्थ अट्ठण्णं कम्माणं जहण्णदवविसयमप्पाबहुगं जह्मण [पद] प्पाबहुगं णाम । उक्कस्सदव्वविसयमुक्कस्सपदप्पाबहुगं णाम । तदुभयदव्वविसयं जहण्णुक्कस्सपदप्पाबहुगं णाम । ण च चउत्थमंगो अस्थि, अणुवलंभादो ।
जहण्णपदेण सव्वत्थोवा आयुगवेयणा दव्वदो जहणिया ॥ १२४ ॥
णाणावरणीयादिकम्मपडिसेहट्टो आउअणिदेसो । खेत्तादिपडिसेहफलो [दव्वणिदेसो ।
अल्पबहुत्वकी प्ररूपणामें जघन्य पद, उत्कृष्ट पद और जघन्योत्कृष्ट पद, इस प्रकार तीन अनुयोगद्वार हैं ॥ १२३ ॥
'अप्पाबहुए त्ति' यहां जो 'इति' शब्द है वह अल्पबहुत्व एक स्वतन्त्र अधिकार है, यह जतलाने के लिये अथवा दूसरे अनुयोगद्वारोंसे उसे अलग करने के लिये प्रयुक्त हुआ है । इसके जघन्य, उत्कृष्ट व जघन्योत्कृष्टके भेदसे तीन अनुयोगद्वार हैं। उनमें आठ कर्मोके जघन्य द्रव्य विषयक अल्पबहुत्वका नाम जघन्य-पद-अल्पबहुत्व है । उनके उत्कृष्ट द्रव्य विषयक अल्पबहुत्वको उत्कृष्ट-पद-अल्पबहुत्व कहते हैं। जघन्य व उत्कृष्ट द्रव्यको विषय करनेवाला अल्पबहुत्व जघन्योत्कृष्ट-पद-अल्पबहुत्व कहलाता है। इन तीनके अतिरिक्त और कोई चतुर्थ भंग नहीं है, क्योंकि, वह पाया नहीं जाता।
जघन्य-पद-अल्पबहुत्वकी अपेक्षा द्रव्यसे जघन्य आयु कर्मकी वेदना सबसे स्तोक है ॥ १२४ ॥
झानावरणीय आदि अन्य कर्मों का प्रतिषेध करनेके लिये 'आयु ' पदका निर्देश किया है । क्षेत्रादिकका प्रतिषेध करने के लिये [द्रव्य पदका निर्देश किया है । उस्कृष्ट
१ आप्रती ' तत्य ' इति पाठः । ३ अ आ-काप्रतिषु ' स्त्रावो' इति पाठः।
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