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________________ १, १, १, १.] यणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे पदमीमांसा भेदो विसेसो पुधत्तमिदि एयद्यो । पद्यते गम्यते परिच्छिद्यते इति पदम्, भेदो चेवपदं भेदपदम् । एत्थ भेदपदेण उक्कस्सादिसरूवेण अहियारो । उक्कस्साणुक्कस्स-जहण्णाजहण्ण-सादि-अणादि-धुव-अदुव-ओज-जुम्म-ओम-विसिट्ठ-णोमणोविसिट्ठपदभेदेण एत्थ तेरस पदाणि । एदेखि पदाणं मीमांसा परिक्खा जत्थ कीरदि सा पदमीमांसा । उक्कस्सादिचदुण्णं पदाणं पाओग्गजीवपरूवणं जत्थ कीरदि तमणियोगद्दारं सामित्तं णाम । जत्थ एदेसि । चदुण्णं पदाणं थोवबहुत्तं वुच्चदि तमप्पाबहुगं णाम । __ एदं देसामासियसुत्तं, तेण संखा-गुणयार-ओज-ट्ठाण-जीवसमुदाहारा ति पंच अणियोगदाराणि अण्णाणि वत्तव्वाणि भवंति, अण्णहा संपुण्णपरूवणाभावादो । तेण पुव्विल्लेहि सह एत्थ अट्ठ अणियोगद्दाराणि णादव्वाणि भवति । उत्तं च (पदमीमांसा संखा गुणयारो चउत्थयं च सामित्तं । आजो अप्पाबहुगं ठाणाणि य जीवसमुहारो ॥२॥ (इदि के वि आइरिया भणंति, तण्ण घडदे ) कुदो १ ण ताव ओजअणियोगदारं ............ भेद, विशेष और पृथक्त्व, ये एकार्थक शब्द हैं। पद शब्दका निरुक्त्यर्थ है'पद्यते गम्यते परिच्छिद्यते' जो जाना जाय वह पद है, भेद रूप ही पद भेदपद कहलाता है। यहां उत्कृष्ट आदि रूप भेदपदका अधिकार है। उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य, अजघन्य, सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव, ओज, युग्म, ओम, विशिष्ट और नोओम-नोविशिष्ट पदके भेदसे यहां तेरह पद हैं । इन पदोंकी मीमांसा अर्थात् परीक्षा जिस अधिकारमें की जाती है वह पदमीमांसा अनुयोगद्वार है । उत्कृष्ट आदि चार पदोंके योग्य जीवोंकी प्ररूपणा जहाँ . की जाती है उसका नाम स्वामित्व अनुयोगद्वार है। जहां इन चार पदोका 3 कहा जाता है वह अल्पबहुत्व अनुयोगद्वार है। यह देशामर्शक सूत्र है, इसलिये यहां संख्या, गुणकार, ओज, स्थान और जीवसमदाहार, ये पांच अन्य अनुयोगद्वार और वक्तव्य हैं, क्योंकि, इनके विना सम्पूर्ण प्ररूपणा नहीं हो सकती । इसलिये उन पूर्वोक्त तीन अनुयोगद्वारोंके साथ यहां आठ अनुयोगद्वार सातव्य है । कहा भी है पदमीमांसा, संख्या, गुणकार, चौथा स्वामित्व, ओज, अल्पबहुत्व, स्थान और जीवसमुदाहार, ये आठ अनुयोगद्वार हैं ॥ २॥ ऐसा कितने ही आचार्य कहते हैं। परन्तु वह घटित नहीं होता। उसीको आगे स्पर करते हैं-- ओज अनुयोगद्वार तो पृथग्भूत है नहीं, क्योंकि, ओज और युग्म प्ररूपणाकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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