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________________ वेयणदव्वविहाणं • वेयणादवविहाणे ति तत्थ इमाणि तिण्णि अणियोगद्दाराणि णादव्वाणि भवंति- पदमीमांसा सामित्तमप्पाबहुए त्ति ॥ १ ॥ वेयणा च सा दव्वं तं वेयणादव्वं, तस्स विहाणं उक्कस्साणुक्कस्स-जहण्णादिपरूवणं; विधीयते अनेनेति व्युत्पत्तेः । तं वेयणदत्वविहाणं । तत्थ इमाणि पदमीमांसादितिण्णि अणियोगद्दाराणि णादव्वाणि भवंति । तत्थ पदं दुविहं- ववत्थापदं भेदपदमिदि । जस्स जम्हि अवट्ठाणं तस्स तं पदं, हाणमिदि वुत्तं होदि । जहा सिद्धिखेत्तं सिद्धाणं पदं । अस्थालावो अत्थावगमस्स पदं । उत्तं च अत्यो पदेण गम्मइ पदमिह अट्ठरहियमणमिलप्पं । पदमत्थस्स णिमेणं अत्थालावो' पदं कुणई ॥ १ ॥ ___अब वेदनाद्रव्यविधानका प्रकरण है। उसमें पदमीमांसा, स्वामित्व और अल्पबहुत्व, में तीन अनुयोगद्वार ज्ञातव्य हैं ॥१॥ वेदना पदका द्रव्य पदके साथ कर्मधारय समास है-वेदना जो द्रव्य वह घेदना द्रव्य । इसके विधान अर्थात् भेद उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट और जघन्य आदि अनेक हैं जिनका इस अधिकारमें कथन किया गया है। विधान शब्दका व्युत्पत्यर्थ है 'विधीयते थनेन' जिसके द्वारा विधान किया जाय । यह 'वेदनाद्रव्यविधान' पदका अर्थ है। इसके ये पदमीमांसा आदि तीन अनुयोगद्वार जानने चाहिये । पद दो प्रकारका है-व्यवस्थापद और भेदपद । जिसका जिसमें अवस्थान है वह उसका पद अर्थात् स्थान कहलाता है, यह उक्त कथनका तातार्य है। जैसे सिद्धिक्षेत्र "सिद्धोका पद है । अर्थालाप अर्थपरिशानका पद है। कहा भी है .., अर्थ पदसे जाना जाता है। यहां अर्थ रहित पद उच्चारण के अयोग्य है। पद . अर्थका स्थान है । अतः अर्थोच्चारण पदको उत्पन्न करता है ॥१॥ १ अप्रतौ ' णामेत्त', आप्रतौ ' णमेत्त', काप्रतौ 'नामेत्त' इति पाठः। २ अप्रतौ ' अत्थालोवा', आप्रतौ ' त्रुटितोऽत्र पाठः, स-काप्रत्योः ' अत्थालोवो ' इति पाठः। . ३ पदमत्थस्स निमेणं पदामिह अत्थरहियमणहिलप्पं । तम्हा आइरियाणं अत्थालावो पदं कुणई॥ बबब. १.१. ९१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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