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१, २, ३, ४.] वेयणणामविहाणं
[ १७ अहिप्पाए तदसंभवादो । ण च अण्णम्हि उजुसुदे अण्णस्स उजुसुदस्स संभवो, मिण्णविसयाणं णयाणमेयविसयत्तविरोहादो ।
सदणयस्स वेयणा चेव वेयणा ॥ ४ ॥
वेयणीयदव्वकम्मोदयजणिदसुह-दुखाणि अट्ठकम्माणमुदयजणिदजीवपरिणामो वा वेदणा, ण दवं; सद्दणयविसए दवाभावादो। एवं वेयणणामविहाणमिदि समतमणियोगद्दारं ।
वैसा मानना सम्भव नहीं है। [अर्थात् जब कि वेदनाका अर्थ सुख-दुख है तो वह ऋजुलून नयकी अपेक्षा उदयगत वेदनीयस्कन्ध ही हो सकता है, उदयगत अन्य कर्मस्कन्ध वेदना नहीं हो सकता। और अन्य ऋजुसूत्र में अन्य ऋजुसूत्र सम्भव नहीं है, क्योंकि, भिन्न भिन्न विषयोंवाले नयोंका एक विषय मानने में विरोध आता है। यही कारण है कि यहां ऋजुसूत्र नयकी अपेक्षा वेदना शब्द द्वारा आठ कौके उदयगत पुद्गलस्कन्ध नहीं प्रहण किये गये हैं।]
विशेषार्थ-यहां ऋजुसूत्र नयकी अपेक्षा वेदना' का क्या अर्थ है, यह बतलाया गया है। सूत्रमें इस नयकी अपेक्षा केवल वेदनीय कर्मको ही वेदना कहा है जिससे ऋजुसत्र नयका विषय विचारणीय हो गया है। ऋजुसूत्र पर्यायार्थिक नयका एक भेद है, अत: ऐसी शंका होना स्वाभाविक है कि ऋजुसूत्र नयका विषय द्रव्य कैसे हो सकता है। इस शंकाका जो समाधान किया गया है उसका भाव यह है कि एक तो व्यंजन पर्यायकी अपेक्षा ऋजुसूत्र नयका विषय द्रव्य बन जाता है। दूसरे, उत्पाद और व्ययसे द्रव्य सर्वथा स्वतंत्र पदार्थ नहीं है। इसलिये इस अपेक्षासे द्रव्यको जुसूत्र नयका विषय मानने में कोई बाधा नहीं आती। शेष कथन सुगम है।
शब्द नयकी अपेक्षा वेदना ही वेदना है ॥ ४ ॥
शब्द नयकी अपेक्षा वेदनीय द्रव्य कर्मके उदयसे उत्पन्न हुआ सुख-दुख अथवा माठ कमौके उदयसे उत्पन्न हुआ जीवका परिणाम वेदना कहलाता है, द्रव्य नहीं, क्योंकि, शब्द नयका विषय द्रव्य नहीं है।
इस प्रकार वेदनानामविधान अनुयोगद्वार समाप्त हुमा।
१बापतौ 'समवो पि' इति पाठः।
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