________________
४, २, ४,
arrमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्तं
[ ३५५
-
चरिमगुणहाणि चरिमणिसेगभागद्दारस्स अद्धं विरलिय सगलपक्खेवं समखंड काढूण दिण्णे एक्क्क्स्स वस्स दुचरिमगुणहाणिचरिमणिसगो पावदि । संपहि पयदणिसेगो पदम्हादो चदुहि गोवच्छविसेसेहि अहियो त्ति कट्टु रूवाहियगुणहाणीए अद्वेण रूवाहिएण उपरिमविरलणमावट्टिय लद्धे तम्हि चेव सोहिदे सुद्ध सेसेो तदित्थविगलपक्खेव भागहारो होदि । पुणो एदे उवरिमविरलणरूवधरिदेसु अवणिय सगलपक्खेवे कस्सामा । तं जहा विगलपक्खेवभागद्दारमेत्तविगलपक्खेवाणं जदि एगो सगलपक्खेवो लब्भदि तो समलपक्खेवभागद्दारमेत्तविगलपक्खेवाणं किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओ वट्टिदाए लद्धमेत्तसयलपक्खेवा होंति । सयलपक्खेवसलागाओ विगलपक्खेवभागहारेण गुणिदाओ जोगट्ठाणद्धाणं होदि । एत्तियमद्धाणमुवरि चडिदूण एगसमयं बंधिदूणागदो च, जहण्णजोगेण जहण्णबंधगद्धाए च बंधिय तदनंतर हेट्ठिमसमए द्विदो च, सरिसा । एदेण कमेण दोगुणहाणीओ ओसरण दिस्स तदित्थविगलपक्खेवा वुच्चदे । तं जहा — दोगुणहाणीओ ओदिण्णो ति दुरूवाणमण्णोष्णन्भत्थरासिणा रूवूणेण दिवङ्कगुणहाणि गुणिय चरिमगुणहाणि - चरिमणिसेगभागद्दारे भागे हिदे गुणहाणिसलागाणं रूवौणण्णोण्णग्भत्थरा सिस्स तिभागो
१२२. }
हैं। वह इस प्रकार है- चरम गुणहानि सम्बन्धी चरम निषेकके भागहारके अर्ध भागका विरलन करके सकल प्रक्षेपको समखण्ड करके देनेपर एक एक रूपके प्रति द्विचरम गुणहानिका चरम निषेक प्राप्त होता है । अत्र प्रकृत निषेक चूंकि इसकी अपेक्षा चार गोपुच्छविशेषसे अधिक है, अत एव एक अधिक गुणद्दानिके एक अधिक अर्ध भागका उपरिम विरलन में भाग देनेपर जो लब्ध हो उसको उसीमेंसे घटा देनेवर शुद्धशेष वहां के विकल प्रक्षेपका भागहार होता है। पुनः इनको उपरिम विरलन अंकोंके प्रति प्राप्त राशियोमेंसे कम करके सकल प्रक्षेपोंको करते हैं। वह इस प्रकारसे - विकल-प्रक्षेप- भागद्दार मात्र विकल प्रक्षेपोंके यदि एक सकल प्रक्षेप प्राप्त होता है तो सकल-प्रक्षेप-भागहार मात्र विकल प्रक्षेपोंके कितने सकल प्रक्षेप प्राप्त होंगे, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर जो लब्ध हो उतने मात्र सकल प्रक्षेप होते हैं । सकल-प्रक्षेपशलाकाओको विकल-प्रक्षेप-भागहारसे गुणित करनेपर जो प्राप्त हो उतना योगस्थानाध्वान होता है । इतना अध्वान ऊपर चढ़कर एक समयमें आयुको बांधकर आया हुआ, तथा जघन्य योगसे व जघन्य बन्धककालसे आयुको बांधकर तदनन्तर अधस्तन समय में स्थित हुआ, ये दोनों जीव सहश हैं । इस क्रमसे दो गुणहानियां पीछे हटकर स्थित हुए जीवके वहांका विकल प्रक्षेप कहा जाता है। वह इस प्रकार है- दो गुणहानियाँ चूंकि उतरा है अतः दो रूपों की रूप कम अन्योन्याभ्यस्त राशिसे डेढ़ गुणहानिको गुणित कर चरम गुणहानि सम्बन्धी चरम निषेकके भागहार में भाग देनेपर गुणहानिशलाकाओं की एक कम अन्योन्याभ्यस्त राशिके त्रिभाग प्रमाण विकल-प्रक्षेप
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org