________________
३५४
छक्खंडागमे वेयणाखंड [१, २, १, १२२. पक्खेवभागहारेण खंडिदेगखंडमेत्ता सगलपक्खेवा लम्भंति । एदेसु सगलपक्खेवेसु विगलपक्खेवभागहारेण गुणिदेसु जोगट्ठाणं होदि । पुणो जहण्णजोगट्ठाणादो एत्तियमद्धाणं चडिदण हिदजोगट्ठाणेण बंधिद्गागदो च, जहण्णजोगहाणेण जहण्णबंधगद्धाए च बंधिय तदणंतरहेहिमगोवुच्छं धरेदूण द्विदो च, सरिसा । पुणो एदस्सुवीर परमाणुत्तरादिकमेण- एगो विगलपक्खेयो वड्ढावेदव्यो।
एत्थ विगलपक्खेवपमाणं वुच्चदे । तं जहा- चदुरूवाहियदिवडगुणहाणीए अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमोवट्टिय विरलेदृण एगसगलपक्खेवं समखंड कादूण दिण्णे रूवं पडि चदुरूवाहियदिवड्डगुणहाणिमेत्तचरिमणिसेया पावेंति । पुणो एत्थ स्वाहियगुणहाणिं चदुरूवाहियदिवड्डगुणहाणिणा गुणिय दुचरिमगुणहाणिचरिमसमयादो ओदिण्णद्धाणस्स रूवूणस्स संकलणाए दुगुणिदाए ओवट्टिय रूवाहियं काऊण पुव्वविरलणम्मि भागे हिदे भागलद्धं तम्हि चेव सोहिय सेसण सगलपक्खेवे भागे हिदे विगलपक्खेवो आगच्छदि । पुणो एसविगलपक्खेवभागहारमेत्तविगलपक्खेवेसु वड्विदेसु एगो सगलपक्खेवो वढदि । एदेण कमेण तदणंतरहेछिमगोवुच्छाए जत्तिया सगलपक्खेवा अस्थि तत्तियमेत्ता वड्ढावेदव्वा। - संपहि तिस्से तदणंतरहेछिमगोवुच्छाए सगलपक्खेवपमाणगवेसणा कीरदे। तं जहा
भागहारसे खण्डित करनेपर उसमें एक खण्ड मात्र सकल प्रक्षेप पाये जाते हैं। इन सकल प्रक्षेपोंको विकल-प्रक्षेप-भागहारसे गुणित करनेपर योगस्थान होता है। पश्चात् जघन्य योगस्थानसे इतना अध्वान चढ़कर स्थित योगस्थानसे मायुको बांधकर आया हुआ, तथा जघन्य योगस्थान और जघन्य बन्धककालसे भायुको बांधकर सदनन्तर अधस्तन गोपुच्छको धरकर स्थित हुआ, ये दोनों जीव सदृश हैं । पुनः इसके ऊपर एक परमाणु अधिक आदिके क्रमसे एक विकल प्रक्षेप बढ़ाना चाहिये।
यहां विकल प्रक्षेपका प्रमाण कहते हैं । वह इस प्रकार है-चार रूपोंसे अधिक डेढ़ गुणहानि द्वारा अंगुलके असंख्यातवें भागको अपवर्तित कर विरलित करके एक सकल प्रक्षेपको समखण्ड करके देनेपर रूपके प्रति चार रूपोंसे अधिक डेढ़ गुणहानि मात्र चरम निषेक प्राप्त होते हैं। फिर यहां रूपाधिक गुणहानिको चार रूपोंसे अधिक डेढ़ गुणहानि द्वारा गुणित कर उसे द्विचरम गुणहानिके चरम समयसे नीचे आये हुए रूप कम अध्यानके दुगुण संकलनसे अप्रवतित कर और एक रूप मिलाकर पूर्व विरलनमें भाग देनेपर जो लब्ध हो उसे उसीमेंसे घटाकर शेषका सकल प्रक्षेपमें भाग देनेपर विकल प्रक्षेप आता है । पुनः इस विकल-प्रक्षेप-भागहार मात्र विकल प्रक्षेपोंके बढ़नेपर एक सकल प्रक्षेप बढ़ता है। इस क्रमसे तदनन्तर भधस्तन गोपुच्छ में जितने सकल प्रक्षेप हैं उतने मात्र बढ़ाना चाहिये।
भव उस तदनन्तर मधस्तन गोपुच्छके सकल प्रक्षेपोंके प्रमाणको गषेषणा करते
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org