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१, २, ४, १२२.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सात्ति
[ ३५३ भागहारो वुच्चदे। तं जहा - दुरूवाहियदिवड्डगुणहाणीए चरिमगुणहाणिचरिमणिसयभागहारे भागे हिदे विगलपक्खेवभागहारो होदि । दिवड्डगुणहाणीए किमटुं दोरूवपक्खेवो कदो ? चरिमगुणहाणिचरिमणिसेयादो दुचरिमगुणहाणिचरिमणिसेयस्स दुगुणत्तुवलंभादो। संपहि एसभागहारमेत्तविगलपक्खेवेसु वड्विदेसु एगो सगलपक्खेवो वड्ढदि'। एदेण कमेण दुचरिमगुणहाणिदुचरिमगोबुच्छाए जत्तिया सगलपक्खेवा अस्थि तत्तियमेत्ता वड्ढावेदव्वा।
संपहि एदिस्से गोपुच्छाए सगलपक्खेवगवेसणा कीरदे । तं जहा- अंगुलस्स असंखेज्जदिभागस्सद्धं विरलेद्ण एगसगलपक्खेवं समखंडं कादण दिण्णे एक्केक्कस्स रूवस्स दुचरिमगुणहाणिचरिमणिसेगो पावदि । संपधि दोण्णिगोवुच्छविसेसे एत्थ अहिए इच्छामो त्ति दुरूवाहियगुणहाणिणा अंगुलस्स असंखेज्जदिभागदुभागमोवष्टिय लद्धे तम्हि चेव सोहिदे सुद्धसेसं विगलपक्खेवभागहारो होदि । एदेण सगलपक्खेवे भागे हिदे विगलपक्खेवो आगच्छदि । पुणो एदेण पमाणेण उवरिमविरलणाए सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्तसगलपक्खेवेसु अवणिय तइरासियं कादूण जोइदे सगलपक्खेवभागहारं विगल
प्रक्षेपका भागहार कहते हैं। वह इस प्रकार है-दो रूपोसे अधिक डेढ़ गुणहानिका चरम गुणहानिके चरम निषक सम्बन्धी भागहारमें भाग देनेपर विकल प्रक्षेपका भागहार होता है।
शंका- डेढ़ गुणहानिमें किसलिये दो रूपोंका प्रक्षेप किया है ?
समाधान - चूंकि चरम गुणहानिके चरम निषकसे द्विचरम गुणहानिका चरम निषेक दुगुणा पाया जाता है, अतः उसमें दो रूपोंका प्रक्षेप किया गया है।
अब इस भागहार मात्र विकल प्रक्षेपोंके बढ़नेपर एक सकल प्रक्षेप बढ़ता है। इस क्रमसे द्विचरम गुणहानिके द्विचरम गोपुच्छमें जितने सकल प्रक्षेप हैं उतने मात्र बढ़ाना चाहिये।
___ अब इस गोपुच्छके सकल प्रक्षेपोंकी गवेषणा की जाती है। वह इस प्रकारसे- अंगुलके असंख्यातवें भागके अर्ध भागका विरलन करके एक सकल प्रक्षेपको समखण्ड करके देने पर एक एक रूपके प्रति द्विचरम गुणहानिका चरम निषेक प्राप्त होता है। अब यहां दो अधिक गोपुच्छविशेषोंकी इच्छा
रूपोसे अधिक गुणहानिका अंगुलके असंख्यातवे भागके अर्ध भागम भाग देकर जो लब्ध हो उसे उसी से कम करनेपर शुद्धशेष विकल प्रक्षेपका भागहार होता है। इसका सकल प्रक्षेपमें भाग देनेपर विकल प्रक्षेप आता है। पुनः इस प्रमाणसे उपरिम विरलनके श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र सकल प्रक्षेपोंमें कम कर त्रैराशिक करके खोजनेपर सकल प्रक्षेपके भागहारको विकल प्रक्षेपके
. १ ताप्रतौ ' लम्भदि' इति पाठः । छ. वे. ४५.
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