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________________ ४, २, ४, १२२. ] यणमहाहियारे वैयणदव्यविहाणे सामित्तं [ ३४९ सयले-वियलपक्खेवबंधणविहाणं जोगट्ठाण द्वाणपमाणं च जाणिदुग ओदोरदव्वं जाव अंगुलस्स असंखेज्जदिमागमेत्तो विगलपक्खेबभागहारो हायमाणो पलिदोवमप्रमाणं पत्तो त्ति । संपहि केत्तियमद्भाणमोदिष्णे पलिदोषमं भागहारो होदि त्ति वुत्ते बुच्चदे | तं जहा - आउद्दिवडकम्मद्विदिपलिदो दमसलागाइ तेत्तीस सागरोवमाणं णाणागुणहाणिपलागाओ खंडिय तत्थेगखंडे तेतीस सागरोवमणाणागुणहाणि सलागाण मण्णोष्णन्भत्थरासिम्हि भागे हिदे लद्धं किंचूगमद्वाणं ओदरिय ह्रिदस्स तदित्यविषलपक्व भागद्दारो पलिदोवमं होदि । पुणो एत्तो ओदिण्णद्धाणादा दुगुणमोदिण्णे पलिडोवमस्स अर्द्ध भागहारो होदि, तिगुणमोदिण्णे तिभागो होदि । पद्रेण सरुवेण जहण्णपरित्तासं खेज्जगुणमत्तद्धाणे ओदिण्णे पलिदोवमं जहण्णपरित्तासंखेज्जेग खंडिदूग एगखंडं तदित्थभागहारो होंदि । एतो पहुड ट्ठा विगलपक्खेव भागहारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो होदूण गच्छदि । एदेण रूवेण ओदारिज्जमाण केत्तियमद्धाणमोदिण्णस्स सव्वे गोवच्छविसेसा मिलिहूण एगचरिमगोवच्छपमाणं होंति त्ति भणिदे पलिदोवमद्धाणादो असंखेज्जगुणमोदिष्णे चरिमणिसेयपमाणं सम्बन्धी सकल व विकल प्रक्षेपोंके बन्धनविधान तथा योगस्थानाध्वानके प्रमाणको भी जानकर अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र विकल-प्रक्षेप-भागहारके हीन होते हुए पत्योपभप्रमाणको प्राप्त हो जाने तक उतारना चाहिये । अब कितना अध्वान उतरनेपर पत्योपम भागहार होता है, ऐसा पूछने पर उत्तर देते हैं । वह इस प्रकार है- बाबु कर्म की स्थिति सम्बन्धी डेढ़ पल्योपमकी शलाकाओंसे तेतीस सागरोपमकी नानागुणहानिशलाकाओंको खण्डित कर उनमें से एक खण्डका तेतीस सागरोषयोंकी नानागुणहानि सम्बन्धी शलाकाओंकी अन्योन्यास्वस्त राशिमें भाग देनेपर जो लब्ध हो उससे कुछ कम अध्वान उत्तर कर स्थित हुए जीवके यहांका विकल प्रक्षेपभागहार पल्योपम प्रमाण होता है । फिर इस अव तीर्ण अध्यान से दुगुणा अध्वान उतरनेपर पल्योपम के अर्ध भाग प्रमाण भागहार होता है । पूर्वोक्त अध्यान से तिगुणा उतरनेपर पल्योपम के तृतीय भाग प्रमाण भागद्दार होता है । इस स्वरूप ने जघन्य परीतासंख्यातगुणा मात्र अध्वान उतरनेपर पल्योपमको जघन्य परीता संख्यात से खण्डित करनेपर उसमें एक खण्ड प्रमाण वहां का भागहार होता है। यहां लेकर नीचे विकल-प्रक्षेप-भागहार पल्योपमका असंख्यातवां भाग होकर जाता है । इस रूपसे उतारते हुए कितना अध्यान उतरनेपर सब गोपुच्छविशेष मिलकर एक अन्तिम गोपुच्छ प्रताण होते हैं, ऐसा पूछनेपर उत्तर देते हैं कि पल्योपम प्रमाण अध्यानसे असंख्यातगुणा उतरनेपर सब गोपुच्छविशेष अन्तिम निषेक , १ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-आ-काप्रतिषु 'गोवुच्छाणं सगळ -' इति पाठः । २ ताप्रतौ ' पलिदोवमस्स असं• अद्धं ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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