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________________ ४, २, ४, १२१.] यणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्तं [३१५ पुष्वदव्वं समखंड कादण दिण्णे रूवं पडि दीवसिहामेत्तचरिमणिसेगा पावेंति । पुणो हेठा दीवसिहागुणिदरूवाहियगुणहाणिं रूवूणदीवसिहासंकलणाए ओवट्टिय विरलेदूण उवरिमएगरूवधरिदं समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि इच्छिदविसेसा पाति । ते उवीर दादण समकरणे कीरमाणे परिहीणरूवाणं पमाणं उच्चदे। तं जहा-रूवाहियहेटिमविरलणमेत्तद्धाणं गंतूण जदि एगरूवपरिहाणी लब्भदि तो उवरिमविरलणाए किं लभामा त्ति पमाणेण फलगुणिदमिच्छमोवट्टिय लद्धमुवरिमविरलणाए अवणिद जहण्णदव्वभागहारो होदि । एदेण जहण्णबंधगद्धागुणिदसमयपबद्धे भागे हिदे एगसमयपबद्धस्स असंखेज्जदिभागो जहण्णदव्वं होदि। अधवा, एगसमयपबद्धस्स दीवसिहादव्वं पुव्यमेव अवणिय पच्छा तम्मि बंधगद्धाए गुणिदे दीवसिहादव्वमागच्छदि । तं जहा- णाणागुणहाणिसलागाणमण्णोण्णब्भत्थरामिणा दिवड्वगुणहाणिपदुप्पण्णण एगसमयपद्धे भागे हिदे चरिमणिसेगो आगच्छदि । पुणो एवं चेव भागहारं दीवसिहाए ओवट्टिय विरलेदूण एगसमयपबद्धं समखंडं कादण दिपणे रूवं पडि दीवसिहमित्तचरिमणिसेगा पाति । पुणो हेढा रूवाहियगुणहाणिं दीवसिहागुणिदं विरले दूण उवरिमएगरूवधरिदं समखंडं कादूण दिण्णे रूवं उसका विरलन कर पूर्व द्रव्यको समखण्ड करके देनेपर प्रत्येक एकके प्रति दीप. शिखा मात्र अन्तिम निषेक प्राप्त होते हैं। पश्चात् उसके नीचे दीपशिखासे गुणित एक अधिक गुणहानिमें एक कम दीपशिखासंकलनाका भाग देने पर जो प्राप्त हो उसका विरलन करके उपरिम विरलन के प्रत्येक एकके प्रति प्राप्त राशिको समान खण्ड करके देनेपर प्रत्येक एकके प्रति इच्छित विशेष प्राप्त होते हैं। उनको ऊपर देकर समीकरण करते समय परिहीन रूपोंका प्रमाण कहते है। यथा- एक आधिक अधस्तन विरलन मात्र स्थान जाकर यदि एक अंककी हानि प्राप्त होती है तो उपरिम विरलन में क्या प्राप्त होगा, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करने पर जो प्राप्त हो उसे उपरिम विरलन मेंसे कम करने पर जघन्य द्रव्य का भागहार होता है। इसका जघन्य बन्धककालसे गुणित समयप्रबद्ध में भाग देनेपर एक समयप्रबद्धका असंख्यातवां भाग जघन्य द्रव्य होता है __अथवा, एक समयप्रबद्ध के दीपशिखाद्रव्यको पहिले ही कम करके पश्चात् उसे बन्धककालसे गुणित करनेपर दीपशिखाव्य आता है। यथा- डेढ़ गुणहानिसमुत्पन्न नानागुण हानिशलाकाओंकी अन्योन्याभ्यस्त राशिका एक समयप्रबद्धमें भाग देनेपर अन्तिम निषेक आता है । पुनः इसी भागहारको दीपशिखासे अपघर्तित करनेपर जो प्राप्त हो उसका विरलन करके एक समयप्रबद्धको समखण्ड करके देनेपर प्रत्येक एकके प्रति दीपशिखा मात्र अन्तिम निषेक प्राप्त होते हैं। पुनः नीचे दीपशिखागुणित रूपाधिक गुणहानिका विरलन करके उपरिम विरलनक प्रत्येक एकके प्रति प्राप्त राशिको समखण्ड करके देनेपर प्रत्येक एकके प्रति एक एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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