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________________ १३१) छक्खंडागमे वेयणाखंड [ १, २, १,११५. मज्झस्स हेहा अंतोमुहुत्तद्धमच्छाविदों'। पढमें जीवगुणहाणिट्ठाणंतरे आवलियाए असंखेज्जदिभागमच्छिदो ॥ ११५॥ ____ कुदो ? तत्थ असंखेज्जभागवढेि मोत्तूण अण्णवड्डीणमभावादो जहण्णजोगेण योवदव्यागमादो वा। कमेण कालगदसमाणो अधो सत्तमाए पुढवीए णेरइएसु उववण्णो ॥ ११६॥ __ बद्धपरमवियाउओ भुंजमाणाउअस्स कदलीघादं ण करेदि त्ति कट्ठ अंतोमुहुचूणपुवकोडित्तिभागमवलंबणीकरणं कादूण ओवट्टणाघादेण परभविआउअमघादिय णेरइएसु उप्पण्णो त्ति जाणावणटुं कमेण कालगदादिवयणं भणिदं । तेणेव पढमसमयआहारएण पढमसमयतब्भवत्थेण जहण्णजोगेण आहारिदो ॥ ११७॥ अण्णतरसमयपडिसेहढे तेणेवेत्ति मणिदं । पढमसमयाहारबिदिय-तदियसमय है, अतः यवमध्यके नीचे अन्तर्मुहूर्त काल तक ठहराया है। प्रथम जीवगुणहानिस्थानान्तरमें आवलीके असंख्यातवें भाग काल तक रहा ॥ ११५॥ क्योंकि, वहां असंख्यातभागवृद्धि को छोड़कर अन्य वृद्धियों का अभाव है, अथवा जघन्य योगले थोड़े द्रव्य का आगमन ह। क्रमसे मृत्युको प्राप्त होकर नीचे सातवी पृथिवीके नारकियों में उत्पन्न हुआ॥११६॥ जिसने परभविक आयुको बांध लिया है वह भुज्यमान आयुका कदलीघात नहीं करता है, ऐसा जान करके अन्तर्मुहू कम पूर्वकोटि के विभाग अवलम्बना करण करके अपवर्तनाघातसे परभव सम्बन्धी आयुका घात न करके नारकियोंमें उत्पन्न हुआ, इस बातके शापनार्थ सूत्र में क्रमसे मृत्युको प्राप्त हुआ' इत्यादि वाक्य कहा है। उस ही प्रथम समयवर्ती आहारक और प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ जीवने जघन्य योग द्वारा आहार ग्रहण किया ॥ ११७ ॥ द्वितीयादि अन्य समयोंका प्रतिषेध करनेके लिये 'उस ही ने' ऐसा कहा है। प्रथम १ अ-आ काप्रति मम्झाविदो' इति पाटः। २ अ आ काप्रजिषु' पढमो' इति पाठः। ३ अ-पारयोः 'असंखेजदिमाग' इति पाठः। ४ अ-आ-काप्रतिषु 'मंज.' इति पाठः। ५ प्रतिष -मुक्लंगणा-'इति पार। ६ प्रति 'सुखो अर्णतणय-' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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