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________________ ४, २, ४, ११४. ] वेयणमहाहियारे वेयणदव्यविहाणे सामिसं [ ३३१ णिवदणमवलंबणोकरणं णाम । एदस्स ओकड्डणसण्णा किण्ण कदा ? ण, उदयाभावेण १ उदयाबलियबाहिरे अणिवदमाणस्स ओकड्डणाववएसविरोहादो । पुत्र कोडित्तिभागे पारद्धाउअबंधस्स अट्ठ वि अगरिसाओ कालेण जहण्णाओ होंति, ण अण्णस्सेत्ति जाणावण वा पुव्वकोडिगहणं कदं । दीवसिहादत्रस्त थोक्तमिच्छय अधो सत्तमाए पुढवीए रइएस तेत्तीससागरोवमाअं बंधाविदो । अट्ठहि आगरिसाहि बंधदि त्ति जागा व रहस्साए आउ अबंधगद्धाए त्ति उत्तं, अण्णत्थ आउअबंधगद्धाए जहण्णत्ताभावादो ! तप्पा ओग्गजहण्णएण जोगेण बंधदि ॥ ११३ ॥ किमहं जहणजे गणेव आउअं बंधाविदं ? थोवकम्मपदे सागमणङ्कं । जोगजवमज्झस्स दो अंतोमुहुत्तमच्छिदो ॥ ११४ ॥ जोगजवमज्झादो हेट्ठिमजोगा उवरिमजोगेहिंतो असंखेज्जगुणहीणा त्ति कट्टु जव द्वारा नीचे पतन करना अवलम्बना करण कहा जाता है । शंका- इसकी अपकर्षण संज्ञा क्यों नहीं की ? समाधान नहीं, क्योंकि, परभविक आयुका उदय नहीं होने से इसका उदया - बलिके बाहर पतन नहीं होता, इसलिये इसकी अपकर्षण संज्ञा करने का विरोध आता है। [ आशय यह है कि परभव सम्बन्धी आयुका अपकर्षण होनेपर भी उसका पतन आबाधाकाल के भीतर न होकर आबाधासे ऊपर स्थित स्थितिनिषेकोंमें ही होता है, इसी से इसे अपकर्षणसे जुदा बतलाया है । ] -- अथवा, पूर्वकोटिके त्रिभागमें प्रारम्भ किये गये आयुबन्धके आठों अपकर्ष कालको अपेक्षा जघन्य होते है, अन्यके नहीं; इस बात के ज्ञापनार्थ सूत्र में पूर्व कोटि पदका ग्रहण किया है । दीपशिखाद्रव्यके थोड़ेपनकी इच्छा कर नीचे सप्तम पृथिवीके नारकियों में तेतीस सागरोपम प्रमाण आयुको बंधाया है । आठ अपकर्षो द्वारा बांधता है, इसके ज्ञापनार्थ सूत्रमें 'थोड़े आयुबन्धककालसे ' यह कहा है, क्योंकि, अन्यत्र आयुबन्धककाल जघन्य नहीं है । तत्त्रायोग्य जघन्य योगसे बांधता है ॥ ११३ ॥ शंका - जघन्य योगसे ही आयुको किसलिये बंधाया है ? समाधान - थोड़ कर्मप्रदेशों के आस्रव के लिये जघन्य योगसे आयुको बंधाया है ? योगयवमध्यके नीचे अन्तर्मुहूर्त काल तक रहा ॥ ११४ ॥ चूंकि योगयवमध्य से नीचे के योग उपरिम योगों की अपेक्षा असंख्यातगुणे हीम १ प्रतिषु 'मुषलंगणा ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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