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समुदाहारपरूवणाएं णाणावरणभंगो । एवं णामा-गोदाणं ॥ ११० ॥
जहा वेदणीयस्स जहण्णाजदण्णदव्वस्स परूवणा कदा तथा णामा-गोदाणं पि कादव्वं, विसेसाभावादा |
सामित्तेण जहण्णपदे आउगवेदणा दव्वदो जहणिया कस्स ? ॥ १११ ॥
छक्खंडागमे वेयणाखंड
( ४, २, ४, ११०.
सुगमं ।
जो जीवो पुव्वकोडाउओ अधो सत्तमाए पुढवीए रइएस आउअं बंधदि रहस्ताए आउअबंधगद्धाए ॥। ११२ ।।
पुव्वको डाउओ चैव किमहं णिरयाउअं बंधाविदो ? ओलंबणा करणेण बहुदव्वगालणङ्कं । किमवलंबणांकरणं णाम ? परभविआउअ उवरिमडिदिदेव्वस्स ओकड्डणाए हेट्ठा
स्वामित्वको कहना चाहिये। यहां जीवसमुदाहारकी प्ररूपणा ज्ञानावरणके समान है । इसी प्रकार नाम व गोत्र कर्मके जघन्य एवं अजघन्य द्रव्यकी प्ररूपणा करना चाहिये ॥ ११० ॥
जिस प्रकार वेदनीय कर्मके जघन्य व अजघन्य द्रव्यकी प्ररूपणा की है उसी प्रकार नाम और गोत्र कर्म की भी करना चाहिये, क्योंकि, उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है ।
स्वामित्वकी अपेक्षा जघन्य पदमें आयु कर्मकी वेदना द्रव्यकी अपेक्षा जघन्य किसके होती है ? ॥ १११ ॥
यह सूत्र सुगम है ।
जो पूर्वकोटिकी आयुवाला जीव नीचे सप्तम पृथिवीके नारकियों में थोड़े आयुबन्धककाल द्वारा आयुको बांधता है ॥ ११२ ॥
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शंका- पूर्वकोटि प्रमाण आयुवाले जीवको ही किसलिये नारकायुका बन्ध कराया ? समाधान - अवलम्बन करण द्वारा बहुत द्रव्यकी निर्जरा कराने के लिये पूर्वकोटि भयुवालेको नारकायुका बन्ध कराया है ।
शंका
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- अवलम्बना करण किसे कहते हैं ?
समाधान - परभव सम्बन्धी आयुकी उपरिम स्थिति में स्थित द्रव्यका अपकर्षण
१ अ आ-ताप्रतिषु 'किमुवलंबणा-' इति पाठः । २ काप्रतौ ' उपरिमाट्ठेद ' इति पाठः ।
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