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१,२,१, १०९
यणमहाहियारे वेयणदबविहाणे सामित्तं
खंडएण सह धरिय हितो च, सरिसा । एत्तो पहुडि हेडा जेण हिदिघादो णस्थि तेज एगेगगुणसेडिगोवुच्छं वड्डाविय पुवकोडिं सव्वमादारदव्वं जाव सजोगिपढमसमओ ति। पुणो तत्थ द्रुविय परमाणुत्तरादिकमेण एगगुणसेडिगोवुच्छा वड्ढावेदव्वा । एवं वहिदण ट्ठिदो च, चरिमसमयखीणकसाओ च, सरिसा । पुणो पुविल्लं मोत्तूण चरिमसमयखीणकसाओ परमाणुत्तरादिकमेण बड्ढावेदव्यो जाव तदणंतरहेहिमगुणसेडिगोउच्छा वडिदा ति । एवं वड्डिद्ण हिदो च, अण्णेगो तदित्यद्विदिखंडएण सह खीणकसायदुचरिमगुणसेडिगोवुन्छ धरेद्ण हिदो च, सरिसा । एवमोदारेदव्वं जाव सुहुमखवगचरिमसमओ ति । पुणो सुहुमखवगचरिमसमएण णवकबंधेणूणवेदणीयदुचरिमगुणसेडिगोउच्छा वड्ढावेदव्वा । एवं वडिदण विदो च, अण्णगो सुहुमदुचरिमसमए हिदो च, सरिसा । एवं जाणिदण भोदारेदव्वं जाव संजदपढमसमओ त्ति । पुगो एत्थ पुषविधाणेण णारगदवेण संघिय उक्कस्सं कादूण गेण्डिदव्वं ।
एवं गुणिदकम्मंसियसत्तं पि अस्सिद्ग अजद्दण्णदव्यसामित्तं वत्तव्वं । एत्य जीव
मार्जित करण के अन्तिम समय सम्बन्धी गुणश्रेणिगोपुच्छ को वहांके स्थितिकाण्डको साथ धरकर स्थित हुआ दूसरा एक जीव, ये दोनों सदृश है । यहांले लेकर नीचे चूंकि स्थितिघात नहीं है, अतः एक पक गुणश्रेणिगोपुच्छ बढ़ाकर सयोगी केवलोके प्रथम समयके प्राप्त होने तक पूर्वकोटि प्रमाण सब काल उतारना चाहिये । पुनः वहां स्थापित कर पक परमाणु अधिक आदिके करसे एक गुणश्रेणिगोपुच्छा बढ़ाना चाहिये। इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुआ जीर, तथा अन्तिम समयवर्ती क्षीणकबाय जीव, ये दोनों सदृश है। पुनः पूर्वोक्त जीवको छोड़कर अन्तिम समयवर्ती क्षीणकषाय जीवको एक परमाणु भधिक आदिके क्रमस तदनन्तर अधस्तन गुणश्रेणिगोपुच्छाके बढ़ने तक बढ़ाना चाहिये । इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुआ जीव, तथा वहांके स्थितिकाण्डकके साथ क्षीणकषायकी विचरम गुणश्रेणिगोपुच्छ को धर कर स्थित हुआ दूसरा एक जीव, ये दोनों साश। इस प्रकार अन्तिम समयवर्ती क्षीणकषाय क्षपक तक उतारना चाहिये। पुनः सूक्ष्म साम्परायिक झपकके अन्तिम समयमें नवक बन्धसे रहित वेदनीयकी विचरम गुणश्रेणिगोपुच्छा बढ़ाना चाहिये । इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुआ जीव, तथा सूक्ष्म साम्परायके द्विचरम समय में स्थित हुआ दूसरा एक जीव, ये दोनों सहश हैं। इस प्रकार जानकर प्रथम समयवर्ती संयत तक उतारना चाहिये । पुनः यहां पूर्वोक्त विधानसे नारक द्रव्य के साथ साम्प्रतिक द्रव्यको उत्कृष्ट करके ग्रहण करना चाहिये।
इसी प्रकार गुणितकर्माशिकके सत्त्वका भी आश्रय करके भजनम्य बन्यो
१ अ-आ काप्रतिषु 'पड्देि ति यति पाठः ।
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