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छखंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, ४, १०९.
अण्णेगो पुव्वविधाणेणागतूण तदणंतरगुणसेडिगोवुच्छं तिस्से चरिमफालिं' च धरेदूर्णं सजोगिचरिमसमयदिो च, सरिसा । एतो एगेगगुणसेडिगोवुच्छं वड्डाविय ओदारेदम्वं जाव अंत मुहुत्तेण सच्चं डिदिखंडयमुट्ठिदेत्ति । पुणो वि एवं चेव ओदारेदव्वं जाव लोगमावूरिय दिकेवलित्ति । पुणो एत्य परमाणुत्तरादिकमेण तदनंतर हेडिम गुणसेडिगोवुच्छमेत्तं वडिय दो च, अण्णेगो तदित्थट्ठिदिखंडएण हेट्ठिमगुणसेडिग वुच्छं धरेदूण मंथं काढूण ट्ठिदो च, सरिसा । पुगो पुव्वदव्वं मोत्तूण मंथगदजीवदव्वस्सुवरि तदणंतर
मगुणसेडिगोच्छं वड्डिय डिदो च, अण्णेगो तदित्थट्ठिदिखंडपण सह हेडिम उदयगदगुणसेडिगोच्छं धरिय कवाडगदजीवो च, सरिता । तदो पुव्विल्लं मोत्तूग इमं घेत्तून परमाणुत्तरादिकमेण एगहेट्टिमगुणसे डिगोवुच्छमेत्तं वढावेदव्वं । एवं वडिदूण द्विदो घ अण्णेगो जीवो तदित्थट्ठिदिखंडएण सह हेट्ठिमगुणसे ढिगोवुच्छं धरिय दंडे काढूण ट्ठिदो च, सरिसा । पुणो पुव्विल्लं मोत्तूण एदस्सुवरि परमाणुत्तरादिकमे तदनंतरहेट्ठिमगुणसेडिग वुच्छमेतं वड्ढि ट्ठिदो च, आवज्जिदकरणचरिमसमयगुण से डिगोवुच्छं तदित्थडिदि
वृद्धिको प्राप्त होकर स्थित हुआ जीव, तथा पूर्वोक्त विधान से आकर तदनन्तर गुणश्रेणिगोपुच्छ और उसकी अन्तिम फालिको लेकर सयोगीके अन्तिम समयमें स्थित हुआ एक दूसरा जीव, ये दोनों सहरा हैं। यहांसे आगे एक एक गुणश्रेणिगोपुच्छको बढ़ाकर अन्तर्मुहूर्त द्वारा समस्त स्थितिकाण्ड के उत्थित होने तक उतारना चाहिये | फिर भी इसी प्रकार लोकको पूर्ण कर स्थित केवली तक उतारना चाहिये । पुनः यहां एक परमाणु अधिक आदि के क्रमसे तदनन्तर अधस्तन गुणश्रेणिगोपुच्छ मात्र बढ़ाकर स्थित हुआ जीव, तथा वहांके स्थितिकाण्डकके साथ अधस्तन गुणश्रेणिगोपुच्छको लेकर मंथ समुद्घात करके स्थित हुआ दूसरा एक जीव, ये दोनों सदृश हैं। पुनः पूर्व द्रव्यको छोड़कर मंथसमुद्घातगत जीवके द्रव्यके ऊपर तदनन्तर अधस्तन गुणश्रेणिगोपुच्छ बढ़ाकर स्थित हुभा जीव, तथा वहांके स्थितिकाण्डकके साथ अधस्तन उदयगत गुणश्रेणिगोपुच्छको लेकर समुद्घातको प्राप्त हुआ दूसरा एक जीव, ये दोनों सदृश हैं। पुनः पूर्व जीवको छोड़कर और इसे ग्रहण कर एक परमाणु अधिक आदिके क्रमले एक अधस्तन गुणश्रेणिगोपुच्छ मात्र बढ़ाना चाहिये । इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुआ जीव, तथा वहांके स्थितिकाण्डकके साथ अधस्तन गुणश्रेणिगोपुच्छको लेकर दण्डसमुद्घात करके स्थित हुआ दूसरा एक जीव, ये दोनों सदृश हैं। पुनः पूर्व जीव को छोड़कर इसके ऊपर परमाणु अधिक आदि क्रमसे तदनन्तर अधस्तन गुणश्रेणि गोपुच्छ मात्र बढ़ाकर स्थित हुआ जीव, तथा
कपाट
१ ताप्रतौ ' चरिमफालीए ' इति पाठः । २ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-आ-का-ताप्रतिषु ' घेत्तून ' इति पाठः । ३ अ आ-काप्रतिषु ' गुणसेडिं गोपुच्छं ' इति पाठः । ४ ताप्रतौ ' पदस्सुवरि कमेण ' इति पाठः ।
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