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________________ १, २, ४, १०७ ] यणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्त [३१९ जोणिणिक्खमणजम्मणेण जादो अवस्सीओ ॥ १०३॥ संजमं पडिवण्णो ॥ १०४॥ अंतोमुहत्तेण खवणाए अब्भुट्टिदो ॥१०५॥ अंतोमुहुत्तेण केवलणाणं केवलसणं च समुप्पादइत्ता केवली जादो ॥ १०६॥ कि केवलणाणं ? बज्झत्थअसेसत्यावगमो । किं केवलदसणं ? तिकालविसयअणंतपज्ज यसहिदसगरूवसंवेयणं । एदाणि दो वि समुप्पादइत्ता केवली जादो त्ति उत्तं होदि। तत्थ य भवट्टिदिं पुव्वकोडिं देसूणं केवलिविहारेण विहरित्ता थोवावसेसे जीविदवए त्ति चरिमसमयभवसिद्धियो जादो ॥१०७॥ । केवलणाणुप्पण्णपढमसमए वेदणीयदव्वमोकड्डिदूण उदयादिगुणसेडिं करेदि । तं जहा- उदए थोवं देदि । से काले असंखेज्जगुणमेवमसंखेज्जगुणाए सेडीए देदि जाव कालमें योनिनिष्क्रमण रूप जन्मसे उत्पन्न होकर आठ वर्षका हुआ ॥ १८३॥ संयमको प्राप्त हुआ ॥ १०४ ॥ अन्तर्मुहूर्तमें क्षपणाके लिये उद्यत हुआ ॥ १०५ ॥ अन्तर्मुहूर्तमें केवलज्ञान और केवलदर्शनको उत्पन्न कर केवली हुआ ॥ १०६॥ शंका- केवलज्ञान किसे कहते हैं ? समाधान- बाह्यार्थ अशेष पदार्थोके परिज्ञानको केवल ज्ञान कहते हैं । शंका-केवलदर्शन किसे कहते हैं ? । समाधान- तीनों काल विषयक अनन्त पर्यायों सहित आत्मस्वरूपके संवेदनको केवल दर्शन कहते हैं। इन दोनोंको उत्पन्न कर केवली हुआ, यह अभिप्राय है। वहां कुछ कम पूर्वकोटि मात्र भवस्थिति प्रमाण काल तक केवलिविहारसे विहार करके जीवितके थोड़ा शेष रहनेपर अन्तिम समयवर्ती भव्यसिद्धिक हुआ ॥ १०७॥ केवल ज्ञानके उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें वेदनीय द्रव्यका अपकर्षण कर उदयादिगुणश्रेणि करता है। यथा- उदयमें स्तोक देता है । अनन्तर कालमें असं. ख्यातगुणे प्रदेशाग्रको देता है। इस प्रकार गुणश्रेणिशीर्ष तक असंख्यातगुणित श्रेणि .............. १ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-आ-का-ताप्रतिषु । बज्झद्ध' इति पाठः । २ ताप्रतौ ' असंखेन्जमेव [ म ] संखेबजगणसेडीए' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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