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________________ ३१८] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, ९७. भवद्विदिं दसवाससहस्साणि देसूणाणि सम्मत्तमणुपालइत्ता थोवावसेसे जीविदव्वए ति मिच्छत्तं गदो ॥ ९७ ॥ मिच्छत्तेण' कालगदसमाणो बादरपुढविजीवपज्जत्तएसु उववण्णो ॥ ९८ ॥ अंतोमुहुत्तेण सव्वलहुं सव्वाहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो ॥ ९९ ॥ अंतोमुहुत्तेण कालगदसमाणो सुहमणिगोदजीवपज्जत्तएसु उववणो ॥१००॥ पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तेहि द्विदिखंडयघादेहि पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तेण कालेण कम्मं हदसमुप्पचियं कादूण पुणरवि बादरपुढविजीवपज्जत्तएसु उववण्णो ॥१०१॥ एवं णाणाभवग्गहणेहि अट्ट संजमकंडयाणि अणुपालइत्ता चदुक्खुत्तो कसाए उवसामइत्ता पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताणि संजनासंजमकंडयाणि सम्मतकंडयाणि च अणुपालइत्ता, एवं संसरिदूण अपच्छिमे भवग्गहणे पुणरवि पुव्वकोडाउएसु मणुस्सेसु उववण्णो ॥ १०२ ॥ सव्वलहुं भवस्थिति तक सम्यक्त्वका पालन कर जीवितके थोड़ा शेष रहनेपर मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ ॥ ९७ ।। मिथ्यात्वके साथ कालको प्राप्त होकर बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त जीवों में उत्पन्न हुआ ॥ ९८ ॥ अन्तर्मुहूर्त द्वारा सर्वलघु कालमें सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ ॥ ९९ ॥ अन्तर्मुहूर्तमें मृत्युको प्राप्त होकर सूक्ष्म निगोद पर्याप्त जीवोंमें उत्पन्न हुआ ॥१०॥ पल्यापमके असंख्यातवें भाग मात्र स्थिंतिकाण्डकघातों द्वारा पल्यापमके असंख्यातवें भाग मात्र कालमें कर्मको हतसमुत्पत्तिक करके फिर भी बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त जीवोंमें उत्पन्न हुआ ॥१०१ ॥ इस प्रकार नाना भवग्रहणों द्वारा आठ संयमकाण्डकोंका पालन करके चार चार कषायोंको उपशमा कर पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण संयमासंयमकाण्डकों व सम्यक्त्वकाण्डकोंका पालन करके, इस प्रकार परिभ्रमण करके मन्तिम भवग्रहणमें फिरसे भी पूर्वकोटि आयुवाले मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ ॥ १.२ ॥ सर्वलघु १ मप्रतिपाठोऽयम् | अ-आ-का-ताप्रतिषु 'मिच्छते' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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