________________
३२०
छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, १०७. गुणसेडिसीसओ त्ति । गुणसेडिसीसयादो तदणंतरविदीए असंखेज्जगुणहीणं । तत्तो विसेसहीणं जाव अप्पप्पणो अइच्छावणावलियाए हेट्ठिमसमओ त्ति । बिदियसमए तत्तियमेत चेव दवमोकड्डिदण उदयावलियादिअवविदगुणसेडिं करेदि । तं जहा - उदए थेविं देदि । बिदियाए हिदीए असंखेज्जगुणमेवमसंखेज्जगुणाए सेडीए ताव देदि जाव पढमसमए कदगुणसेडिसीसए त्ति । गुणसेडिसीसयादो तदणंतरउवरिमहिदीए असंखेज्जगुणं देदि । तदुवरिमहिदीए असंखेज्जगुणहीणं । तत्तो विसेसहीणं । एवमसंखेज्जगुणाए सेडीए पदेसग्गं णिज्जरमाणो हिदि-अणुभागखंडयघादेहि विणा केवलिविहारेण विहरिय अंतोमुहुत्तावसेसे आउए दंड-कवाड-पदर-लोगपूरणाणि करेदि । तत्थ पढमसमए देसूणचोद्दसरजुआयामेण सगदेहविक्खंभादो तिगुणविक्खंभेण सगदेहविक्खंभेण वा विक्खंभतिगुणपरिरएण एगसमएण वेदणीयट्ठिदि खंडिद्ण विणासिदसंखेज्जाभागं अप्पसत्थाणं कम्माणं अणुभागस्स घादिदैअणंताभार्ग दंडं करेदि । तदो बिदियसमए दोहि वि पासेहि छुत्तवादवलयं देसूणचोद्दसरज्जु
.........................................
रूपसे प्रदेशाग्रको देता है। गुणश्रेणिशर्षिसे आगेको स्थितिमें असं ख्यातगुणे हीन प्रदेशाग्रको देता है । इससे आगे अपनी अपनी अतिस्थापनावलीके अधस्तन समय तक विशेष हीन विशेष हीन प्रदेशानको देता है।
द्वितीय समयमें उतने ही द्रव्यका अपकर्षण कर उदयाचलिसे लेकर अवस्थित गुणश्रेणि करता है। यथा- उदयमें स्तोक देशान देता है। द्वितीय स्थितिमें असंख्यातगुणे प्रदेशाग्रको देता है । इस प्रकार प्रथम समय में किये गये गुणश्रेणिशीर्षक तक असंख्यातगुणित श्रेणि रूपसे देता है । गुणश्रेणिशीर्षसे आगे की उपरिम स्थिति में असंख्यातगुणे प्रदेशाग्रको देता है । उससे उपरिम स्थितिमें असंख्यातगुणे हीन प्रदेशाग्रको देता है। उससे आगे विशेष हीन प्रदेशाग्र को देता है।
__इस प्रकार असंख्यात गुणित श्रेणि रूपसे प्रदेशाग्र की निर्जरा करता हुआ स्थितिकाण्डकघातों व अनुभागकाण्डकघातोंके विना केवलिविहारसे विहार करके आयुके अन्तर्मुहूर्त शेष रहने पर दण्ड, कपाट, प्रतर व लोकपूरण समधातको करता है। उसमें प्रथम समयमें कुछ कम चौदह राजु आयाम द्वारा, अपने देह के विस्तारकी अपेक्षा तिगुने विस्तार द्वारा, अथवा अपने देह प्रमाण विस्तार द्वारा, तथा विस्तारसे तिगुनी परिधि द्वारा एक समय में वेदनीय की स्थिति को खण्डित कर उसके संख्यात बहुभागके विनाश से संयुक्त एवं अप्रशस्त कौके अनुभागके अनन्त बहुभागके घातसे सहित दण्ड समुद्घातको करता है । पश्चात् द्वितीय समय में दोनों ही पार्श्व भागोसे
ताप्रतौ '-गुणमेव संखेन्ज' इति पाठः । २ एलस्पू भावस्थो- उप्पण्णकेवलणाण-दंसणेहि सम्बदबपज्जाए तिमालविसए जाणतो पस्संतो करणक्कमववहाणवज्जियअणंतावरियो असंखेज्जगुणाए सेडीए कामणिज्जरं कुणमाणो देसूणपुव्वकोडिं विहरिय सजोगिीजणो अंतोमुहुत्तावसंसे आउर दंड-कवाड-पदर लोगपूरणाणि करेदि । ध. अ. प, ११२५. ३ अ-आ-काप्रतिषु 'परिठएण', ताप्रती 'परिट्टएण' इति पाठः । ४ मत्रतो 'वेदणीयट्टिदीए इति पाठः । ५ तातोपादिद' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org