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वेयणणामविहाणं
वेयणाणामविहाणे ति । णेगम-ववहाराणं णाणावरणीयवेयणा दंसणावरणीयवेणा वेयणीयवेयणा मोहणीयवेयणा आउववेयणा णामवेयणा गोदवेयणा अंतराइयवेयणा ॥ १ ॥
वेयणाणामविहाणं किमट्ठमागय ? पयदवेयणाए विहाणपरूवणहूँ तण्णामविहाण'परूवणटुं च आगदं । तत्थ ताव णेगम-ववहाराण वेयणविहाणं उच्चदे । तं जहा-जा सा णोआगमदव्वकम्मवेयणा सा अट्ठविहा णाणावरणीय-दसणावरणीय-बेयणीय-मोहणीय-आउअणाम-गोद-अंतराइयभेएण । कुदो ? अट्ठविहस्स दिस्समाणस्स अण्णाणादसण-सुहदुक्खवेयणमिच्छत्त-कसाय-भवधारण-सरीर-गोद-वीरियादिअंतराइयकज्जस्स अण्णहाणुक्वत्तीदो । ण च
अब वेदनानामविधानका अधिकार है । नैगम व व्यवहार नयकी अपेक्षा ज्ञाना. वरणीयवेदना, दर्शनावरणीयवेदना, वेदनीयवेदना, मोहनीयवेदना, आयुवेदना, नामवेदना, गोत्रवेदना और अन्तरायवेदना, इस प्रकार वेदना आठ भेद रूप है ॥१॥
शंका-इस सूत्रमें वेदनानामविधान, यह पद किसलिये आया है ?
समाधान-प्रकृत वेदनाके विधानका कथन करनेके लिये और उसके नामका निर्देश करने के लिये 'वेदनानामविधान' पद आया है।
उसमें पहले नैगम व व्यवहार नयकी अपेक्षा वेदनाका विधान करते हैं। वह इस प्रकार है- जो वह नोआगमद्रव्यकर्मवेदना कही है वह ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तरायके भेदसे आठ प्रकारकी है, क्योंकि, ऐसा नहीं माननेपर जो यह अज्ञान, अदर्शन, सुख-दुखवेदन, मिथ्यात्व व कषाय, भव. धारण, शरीर व गोत्र रूप एवं वीर्यादिके अन्तराय रूप आठ प्रकारका कार्य दिखाई देता है वह नहीं बन सकता है । यदि कहा जाय कि यह जो आठ प्रकारका कार्य भेद दिखाई
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१ प्रतिषु ' तण्णाममीहाण ' इति पाठः।
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