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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, २, ४. किमिदि दव्वं णेच्छदि ? पज्जायंतरसंकंतिविरोहादो सद्दभेएण अस्थपढणवावदम्मि वत्थुविसेसाणं णाम-भाव मोत्तूण पहाणत्ताभावादो । एमा णयपरूवगा जदि वि जुगवं वोत्तुमसत्तीदो सुत्ते पच्छा परूविदा तो वि णिक्खवट्ठपरूवणादो पुव्वं चेव परूविदव्वा, अण्णहा णिक्खेवट्ठपरूवणाणुववत्तीदो।
संपहि पयदवेयणापरूवणं कस्सामो - एदासु वेयणासु काए पयदं १ दव्वट्ठियणय पडच्च णोआगमकम्मदव्ववेयणाए बंधोदय-संतसरूवाए पयदं । उजुसुदणयं पडुच्च उदयगदकम्मदव्ववेयणाए पयदं । सद्दणयं पडुच्च कम्मोदय-बंधजणिदभाववेयणाए ण पयदं, भावमहिकिच्च” एत्थ परूवणाभावादो । एवं वेयणणयविभासणदा त्ति समत्तमणियोगद्दारं ।
शंका-शब्दनय द्रव्यनिक्षेपको स्वीकार क्यों नहीं करता ?
समाधान-एक तो शब्दनयकी अपेक्षा दूसरी पर्यायका संक्रमण मानने में विरोध भाता है। दूसरे, वह शब्दभेदसे अर्थके कथन करने में व्यापृत रहता है, अतः उसमें नाम और भावकी ही प्रधानता रहती है, पदार्थोंके भेदोंकी प्रधानता नहीं रहती; इसलिये शब्द. नय द्रव्यनिक्षेपको स्वीकार नहीं करता।
__ एक साथ कहनेके लिये असमर्थ होनेसे यह नयप्ररूपणा यद्यपि सूत्र में पीछे कही गई है तो भी निक्षेपार्थप्ररूपणासे पहले ही उसे कहना चाहिये, अन्यथा निक्षेपार्थकी प्ररूपणा नहीं बन सकती है।
__ अब प्रकृत वेदनाकी प्ररूपणा करते हैं इन वेदनाओंमें कौनसी वेदना प्रकृत है ? द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा बन्ध, उदय और सत्त्व रूप नोआगमकर्मद्रव्यवेदना प्रकृत है। ऋजुसूत्रनयकी अपेक्षा उदयको प्राप्त कर्मद्रव्यवेदना प्रकृत है । शब्दनयकी अपेक्षा कर्मके उदय व बन्धसे उत्पन्न हुई भाववेदनों यहां प्रकृत नहीं है, क्योंकि, यहां भावकी अपेक्षा प्ररूपणा नहीं की गई है।
इस प्रकार वेदन-नयविभाषणता नामक अनुयोगद्वार समाप्त हुआ।
१ प्रतिषु अत्थपदणवावदम्मि' इति पाठः। २ प्रतिषु 'गुणभा' इति पाठः । ३ अतोऽग्रे अ-आप्रत्योः ‘णोआगमदव्ववेयणासु काए पयदं दवट्ठियणयं पडुच्च' इत्यधिक पाठः। ४ प्रतिषु · वमहीकिच्च ' इति पाठः।
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