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________________ १, २, २, ३.] वैयणामहाहियारे णयविमासणदा दव्वाणं दव्वट्ठियणयविसयत्तं सुगमं । कथं भावो वट्टमाणकालपरिच्छिण्णो दव्वट्ठियणयविसयो ? ण, वट्टमाणकालेण वंजणपज्जायावट्ठाणमेत्तेणुवलक्खियदव्वस्स दव्वट्ठियणयविसयत्ताविरोहादो। ( उजुसुदो ट्ठवणं णेच्छदि ॥३॥) कुदो ? पुरिससंकप्पवसेण अण्णत्थस्स अण्णत्थसरूवेण परिणामाणुवलंभादो । तब्भवसारिच्छसामण्णप्पयदव्वमिच्छंतो उजुसुदो कधं ण दवट्ठियो ? ण, घड-पड-त्थंभादिवंजणपज्जायपरिच्छिण्णसगपुव्वावरभावविरहियेउजुवट्टविसयस्स दव्वट्ठियणयत्तविरोहादो । । सद्दणओ णामवेयणं भाववेयणं च इच्छदि ॥ ४॥ . आगमद्रव्यनिक्षेप व नोआगमद्रव्यनिक्षेप ये द्रव्यार्थिकनयके विषय हैं, यह बात सुगम है। शंका-वर्तमान कालसे परिच्छिन्न भावनिक्षेप द्रव्यार्थिकनयका विषय कैसे है। समाधान नहीं, क्योंकि, व्यञ्जन पर्यायके अवस्थान मात्र वर्तमान कालसे उपलक्षित द्रव्य द्रव्यार्थिक नयका विषय है, ऐसा मानने में कोई विरोध नहीं है। ऋजुसूत्र नय स्थापनानिक्षेपको स्वीकार नहीं करता है ॥३॥ क्योंकि, पुरुषके संकल्प क्श एक पदार्थका अन्य पदार्थ रूपसे परिणमन नहीं पाया जाता है। शंका-तद्भवसामान्य व सादृश्यसामान्य रूप द्रव्यको स्वीकार करनेवाला ऋजुसूत्र नय द्रव्यार्थिक कैसे नहीं है ? समाधान-नहीं, क्योंकि ऋजुसूत्र नय घट, पट व स्तम्भादि स्वरूप व्यञ्जन पर्यायोंसे परिच्छिन्न ऐसे अपने पूर्वापर भावोंसे रहित वर्तमान मात्रको विषय करता है, अतः उसे द्रव्यार्थिक नय माननेमें विरोध आता है। शब्दनय नामवेदना और भाववेदनाको स्वीकार करता है ॥४॥ १ प्रतिषु · उजुसुदा ' इति पाठः। २ उजुसुदो ठवणवज्जे । जयध. (चू. सू.) १, पृ. २६२, २७७. ३ प्रतिषु ' भावथिरहिय- ' इति पाठः। ४ प्रतिषु 'वेयणं वेयणं च ' इति पाठः। ५ सद्दणयस्स णामं भावो च । जयध. (चू. सू.) १, पृ. २६४, २७९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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