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________________ छक्खंडागमे वेयणाखंड [१, २, ४, ७८. तवदिरित्तमजहण्णा ॥ ७८ ॥ जहण्णदव्वादो परमाणुत्तरादिदव्वमजहण्णा वेयणा । एत्थ खविद-गुणिदकम्म. सियाण कालपरिहाणीओ तेसिं संताणि च अस्सिदूर्ण अजहण्णपदेसपरूवणे कीरमाणे णाणावरणभंगो । णवरि मोहणीयस्स खवगचरिमसमयदव्वं घेत्तूण अजहण्णदव्वपरूवणा कायव्वा। णवरि संतादो अजहण्णदव्वपरूवणे कीरमाणे जहण्णदव्वस्सुवरि परमाणुतरादिकमेण दुचरिम गुणसेडिगोवुच्छा वड्ढावेदव्वा । पुणो एवं वढिदूण द्विदचरिमसमयसुहुमसांपराइयदव्वेण अण्णस्स जीवस्स खविदकम्मंसियलक्खणेणागंतूण सुहुमसांपराइयदुचरिमसमयट्ठिदस्स दव्वं सरिसं होदि । एवमेगेगगुणसेडिगोवुच्छं वड्डाविय ओदोरदवं जाव सुहुमसांपराइयद्धाए संखेज्जीदभागमोदिण्णो त्ति । पुणो एदस्सुवरि तदणंतरहेट्ठिमगुणसे डिगोवुच्छं वढिदूण ट्ठिदेण अण्णो जीवो तदणंतरहेट्ठिमगुणसेडिगोवुच्छचरिमकंडयचरिमफालिं च धरेदूग ट्ठिदो सरिसो होदि। एवमेगगगुणसेडिगोवुच्छं वड्डाविय ओदोरदव्वं जाव अणियट्टिचरिमसमओ ति । पुणो परमाणुत्तरादिकमेण णवकबंधेणूणदुचरिमगुणसेडिगोवुच्छमेत्तं चरिमसमयअणियट्टी वड्ढावेदव्यो। उक्त तीनों कर्मोंकी इससे भिन्न अजघन्य द्रव्यवेदना है ।। ७८ ॥ जघन्य द्रव्यकी अपेक्षा एक परमाणु आदिसे अधिक द्रव्य अजघन्य वेदना है। यहां क्षपितकौशिक और गुणितकर्माशिककी कालपरिहानियों और उनके सत्वका आश्रय कर अजघन्य द्रव्यके प्रदेशोंकी प्ररूपणा करने पर वह सब कथन ज्ञानावरणके समान है । विशेष इतना है कि मोहनीयके अजघन्य द्रव्यकी प्ररूपणा उसका क्षय करनेवालेके अन्तिम समय सम्बन्धी द्रव्यको ग्रहण कर करना चाहिये। विशेषता यह है कि सत्त्वकी अपेक्षा अजघन्य द्रव्यकी प्ररूपणा करते समय जघन्य द्रव्यके ऊपर एक परमाणु आधिक आदिके क्रमसे द्विचरम गुणश्रेणिगोपुच्छा बढ़ाना चाहिये । पश्चात् इस प्रकार वृद्धि को प्राप्त होकर स्थित अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिकके द्रव्य के साथ क्षपितकांशिक स्वरूपसे आकर सूक्ष्मसाम्परायके द्विचरम समयमें स्थित अन्य जीवका द्रव्य सदृश है। इस प्रकार एक एक गुणश्रेणिगोपच्छको बड़ाकर सूक्ष्म साम्परायिककालके संख्यातवें भाग मात्र अवतीर्ण होने उतारना चाहिये । पश्चात् इसके ऊपर तदनन्तर अधस्तन गुणश्रेणिगोपुच्छको बढ़ाकर स्थित जीवके साथ तदनन्तर अधस्तन गुणश्रेणिगोपुच्छके अन्तिम काण्डक सम्बन्धी अन्तिम फालिको लेकर स्थित हुआ दूसरा जीव सदृश है । इस प्रकार एक एक गुणश्रेणिगोपुच्छको बढ़ाकर अनिवृत्तिकरणके अन्तिम समय तक उतारना चाहिये । पुनः एक परमाणु आधिक आदिके क्रमसे नवक बन्धके विना द्विचरम गुणश्रेणिगोपुच्छ मात्र अन्तिम समयवर्ती अनिवृत्तिकरणको बड़ाना चाहिये । इस प्रकार बड़ाकर १ प्रतिषु ' आश्छिदूण' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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