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५, २, ४, ७६.1 वेषणमहाहियारे वेयणदव्यविहाणे सामित्तं
[३०७ दोहि बड्डीहि षड्ढावेदव्यो जाव गरइयचरिमसमए उक्कस्सदव्य कादण दो-तिण्णि. भवग्गहणाणि तिरिक्खेसु उववज्जिय पुणो मणुस्सेसु उपज्जिय सत्तमासाहियअट्ठवासाणमुवीर सम्मत्तं संजमं च घेत्तूण देसूणपुव्वकोडिं संजमगुणसेडिणिज्जर कादूण थोवावसेसे जीविदव्वए त्ति खवगसेडिं चडिय खीणकसायचरिमसमर विददवेण सरिस आदेत्ति । संपहि एदस्स दव्वस्सुवीर एगो वि परमाणू ण षड्ढदि, पत्तुक्कस्सत्तादो।।
___ अण्णो जीवो गुणिदकम्मसिओ एगसमयमाकड्डिदूण विणासिज्जमाणदषेण ऊणमुक्कस्सदव्वं सत्तमपुढविणेरइय चरिमसमए कादण तिरिक्खेसुववज्जिय मणुस्सेसु उपवण्णो, पुणो समऊणपुव्यकोडिं संजममणुपालिय खीणकसाओ जादो । तस्स चरिमसमयदवं पुपदव्वेण सरिसं होदि । संपधि पुबिल्लखवगं मोत्तण समऊणपुवकोडिं हिंडिदखवगं घेत्तूण अप्पणो ऊणं कादूणागददव्वं परमाणुत्तरादिकमेण दोहि वड्डीहि वढावेदव्वं जाउक्कस्सदव्वं पत्तं ति ।
तदो अण्णो जीवो गुणिदकम्मंसिओ एगसमयमोकड्डिदूग विणासिज्जमाणदव्वेण
बढ़ाना चाहिये जब तक कि नारकके अन्तिम समयमै उस्कृष्ट द्रव्यको करके दो-तीन भवग्रहण तिर्यंचों में उत्पन्न होकर पश्चात् मनुष्यों में उत्पन्न होकर सात मास अधिक आठ वर्षोंके ऊपर सम्यक्त्व व संयमको ग्रहण कर कुछ कम पूर्वकोटि तक संयमगुणश्रेणिनिर्जरा करके जीवितके स्तोक शेष रहनेपर क्षपक श्रेणि चढ़ कर क्षीणकषायके अन्तिम समयमें स्थित जीवके द्रव्यके सदृश नहीं हो जाता। अब इस द्रव्य के ऊपर एक भी परमाणु नहीं बढ़ता, क्योंकि, वह उत्कृष्टपने को प्राप्त हो चुका है।
__ अब गुणित कर्माशिक दूसरा जीव है जो एक समय अपकर्षण कर विनाश किये जानेवाले द्रव्यसे हीन उस्कृष्ट द्रव्यको सप्तम पृथिवीस्थ नारकीके अन्तिम समय में करके तिर्यचों में उत्पन्न होकर फिर मनुष्यों में उत्पन्न हुआ। पश्चात् एक समय कम पूर्वकोटि तक संयमका पालन कर क्षीणकषाय हुआ। उसके अन्तिम समयका द्रव्य पूर्वके द्रव्यसे समान है । अब पूर्वोक्त क्षपकको छोड़कर एक समय कम पूर्वकोटि तक घमे हुए क्षपकको ग्रहण कर अपने हीन करके प्राप्त हुए द्रव्यको एक परमाणु अधिक आदिके क्रमसे उत्कृष्ट द्रव्य प्राप्त होने तक दो वृद्धियोंसे बढ़ाना चाहिये।
उससे भिन्न दूसरा जीव गुणितक शिके एक समय अपकर्षण कर विनाश किये जानेघाले द्रव्यसे हीन उस्कृष्ट द्रव्यको सप्तम पृथिवीस्थ मारकके अन्तिम समयमें
। अ-आ-काप्रति बोरावसे सेण' इति पाठः।
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