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२०११ छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ १, २, ५, ७६. तस्स खीणकसायस्स चरिमसमयदव्वं ओघुक्कस्सभिदि भण्णदे । संपधि गुणिदकम्मसियजहण्णदयादो उक्कस्सदव्वं विसेसाहियं चेव जादं । तं केण कारणेण ? जहण्णदव्यस्सुवीर उक्कस्सेण एगो चेव समयपत्रद्धों' वढदि ति गुरूवंदसादो। संपधि मणुसदध्वस्सेव वड्ढी पत्थि त्ति । पुणो एदेण खीणकसायदव्वेण सह णारगचरिमसमयदव्वमहियं पि' अस्थि समं पि । तत्थ समं घेत्तूण परमाणुत्तररादिकमेण वड्ढावेदव्वं जाव गुणिदकम्मंसियओघुक्कस्सदव्येत्ति। संपधि जहण्णट्ठाणं उक्कस्सट्ठाणम्मि सोहिदे सुद्धसेसमेत्ताणि अजहणट्ठाणाणि पिरंतरगमणादो एग फद्दयं ।
संपधि गुणिदकम्मंसियस्स कालपरिहाणीए अजहण्णदवपमाणं वसइस्सामो । तं जहा- जहण्णसामित्तविहाणेणागंतूण खीणकसायचरिमसमयम्मि एगणिसेगमेगसमयकालं जहण्णदव्वं होदि । पुणो एदस्सुवीर परमाणुत्तरादिकमेण देोहि वड्डीहि खविदो', खविदघोलमाणो' पंचहि वड्डीहि, गुणिदघोलमाणो पंचहि वड्डीहि, गुणिदकम्मंसिओ
समय सम्बन्धी द्रव्य ओघ उत्कृष्ट द्रव्य कहा जाता है । अब गुणितकर्माशिकके जघन्य द्रव्यसे उत्कृष्ट द्रव्य विशेष अधिक ही हुआ।
शंका-गुणितकर्माशिक जघन्य द्रव्यसे जो उत्कृष्ट द्रव्य विशेष अधिक ही हुआ है, वह किस कारणसे ?
समाधान- कारण कि जघन्य द्रव्यके ऊपर उत्कृष्ट रूपसे द्रव्यका एक समयप्रबद्ध ही बढ़ता है, ऐसा गुरुका उपदेश है।
अब केवल मनुष्य के द्रव्य के ही वृद्धि नहीं है। किन्तु इस क्षीणकषायके द्रव्यके साथ नारकीका अन्तिम समय सम्बन्धी द्रव्य अधिक भी है और समान भी है । उनमें समानको ग्रहण कर एक परमाणु अधिक आदिके क्रमसे गुणितक्रर्माशिकके उत्कृष्ट द्रव्य तक बढ़ाना चाहिये । अब उत्कृष्ट स्थानमें से जघन्य स्थानको कम करनेपर जो शेष रहे उतमे अजघन्य स्थान हैं जो विना अन्तरके प्राप्त होनेसे एक स्पर्द्धक रूप हैं ।
. अम कालकी हानिका आश्रय कर गुणितकर्माशिकके अजघन्य द्रव्यका प्रमाण कहते हैं । यथा- जघन्य स्वामित्वके विधानसे आकर क्षीणकषायके अन्तिम समयमें एक समय स्थितिवाला एक निषक जघन्य द्रव्य होता है। पश्चात् इसके ऊपर एक परमाणु आधिक इत्यादि क्रमसे क्षपित [कर्माशिक] को दो वृद्धियोंसे, क्षपितघोलमानको पांच वृद्धियोंसे, गुणितघोलमानको पांच वृद्धियोसे और गुणितकर्माशिकको दो वृद्धियोसे
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१ अ-आ-काप्रति 'उक्कस्सेण दस्वस्स समयपुवो' इति पाठः । २ अ-आ-काप्रतिषु 'वि' इति पाठः । भ-मा-काप्रतिषु 'सविदा' इति पाठः। ४ अ-आप्रत्योः 'घोलमाणे' पति पाठः ।
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