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________________ ३०२) छक्खंडागमे यणाखंड [१, २, ,.. तो उवरिमविरलणाए किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए एगरूवस्स अणंतिमभागो लन्भदि । तम्मि जहण्णपरित्ताणतम्मि सोहिदे सुद्धसेसमुक्कस्सअसंखज्जासंखेज्जमेत्तरूवाणि एगरूवस्स अणंताभागा च भागहारो होदि । एदेण जहण्णदब्बे भागे हिदे इच्छिददव्वं होदि । एदस्सुवरि परमाणुत्तरादिकमेण षड्विदअजहण्णदव्वाणमणंतभागवड्वाए छेदभागहारो होदि । पुणो हेट्ठा उक्कस्समसंखेज्जासंखेज्ज' विरलेदूण उवरिमएगरूवधारदं समखंडं करिय दिण्णे विरलणरूवं पडि अणंतपरमाणओं पार्वेति । पुणो ते उपरिमरूवधरिदेसु दादण समकरणे कदे परिहीणरूवाणं पमाणं वुच्चदे । तं जहारूवाहियटिमविरलणमेत्तद्धाणे जदि एगरूवपरिहाणी लब्भदि तो उवरिमविरलणम्मि किं लभामा ति पमाणेण फलगुणिदइच्छाए ओवट्टिदाए एगरूवमागच्छदि । तम्मि उवरिमविरलणाए सोहिदे सेसमुक्कस्सासंखेज्जासंखेज्ज होदि । एदेण जहण्णदव्वे भागे हिदे भजहण्णहाणं होदि । एत्थेव असंखेज्जभागवड्डीए आदी जादा । संपधि एदस्सुवरि एगपरमाणुम्मि वडिदे तदणंतरउवरिमअजहण्णदव्वं होदि । एदस्स च्छेदभागहारो होदि । ........... अंककी हानि पायी जाती है तो उपरिम विरलनमें क्या प्राप्त होगा, इस प्रकार फलगुणित इच्छा राशिको प्रमाण राशिसे अपवर्तित करनेपर एक अंकका अनन्तवां भाग प्राप्त होता है । उसको जघन्य परीतानन्तमें से कम करने पर उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात और एकका अनन्त बहुभाग शेष रहता है जो प्रकृतमें भागहार होता है । इसका जघन्य द्रव्यमें भाग देनेपर इच्छित द्रव्य होता है। इसके ऊपर एक एक परमाणु अधिक क्रमसे वृद्धिको प्राप्त अजघन्य द्रव्योंकी अनन्तभागवृद्धि का छेदभागहार होता है । पुनः नीचे उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यातका विरलन कर उपरिम विरलनके एक अंकके प्रति प्राप्त राशिको समखण्ड करके देनेपर घिरलन राशिके प्रत्येक एकके प्रति अनन्त परमाणु प्राप्त होते हैं। पश्चात् उन्हें उपरिम विरलन राशिके प्रति देकर समीकरण करने पर परिहीन रूपोका प्रमाण कहते हैं । यथा- एक अधिक अधस्तन विरलन मात्र स्थान जानेपर यदि एक अंककी परिहानि पायी जाती है तो उपरिम विरलनमें क्या प्राप्त होगा, इस प्रकार फलगुणित इच्छा राशिको प्रमाण राशिसे अपवर्तित करनेपर लब्ध पक अंक आता है। उसको उपरिम विरलनमेंसे कम करनेपर शेष उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात होता है। इसका जघन्य द्रव्यमें भाग देनेपर अजघन्य स्थान होता है। यहां ही असंख्यातभागवृद्धिका मादि होता है। अब इसके ऊपर एक परमाणुकी वृद्धि होनेपर तदनन्तर उपरिम मजघन्य द्रव्य होता है । इसका छेदभागहार होता है । इस प्रकार तब तक छेदभागहार । प्रतिषु 'अणंतापभागा' इति पारः। । अ-कापत्योः तातो 'परमाणूओ' इति पाठः । फस्ससंखेम्जासंखे' इति पास। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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