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________________ ४, २, ४, ६९. बेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्त । २९१ किमढे सव्वलहुं पज्जत्तिं णीदो १ सव्वलहुएण कालेण सुहुमणिगोदेसु पवेसिय अप्पदरकालब्भंतरे चेव पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तढिदिखंडयघादेहि अंतोकोडाकोडिट्ठिदिसंतकम्मं धादिय सुहुमणिगोदट्ठिदिसंतसमाणकरणटुं, बादरेइंदियजोगादो असंखेज्जगुणहीणेण सुहुमेइंदियजोगेण बंधाविय उदए बहुप्पदेसणिज्जरणटुं च सव्वलहुएण कालेण पज्जत्तिं णीदो। अंतोमुहुत्तेण कालगदसमाणो सुहुमणिगोदजीवपज्जत्तएसु उववण्णो ॥ ६९॥ अपज्जत्ते मोत्तूण पज्जत्तएसु चेव किमट्टमुप्पाइदो ? ण, अपज्जत्तविसोहीदो अणंतगुणाए पज्जत्तविसोहीए दीहहिदिखंडयघादणहूँ तत्थुप्पत्तीदो । अपज्जत्तजोगादो असंखेज्जगुणेण पज्जत्तजोगेण कम्मग्गहणं कुणंतस्स खविदकम्मंसियत्तं किण्ण फिट्टदे ? ण, पलिदो. वमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तअप्पदरकाले ओसप्पिणिकालो व्व सहावदो चेव भुजगारकालेणं समाधान- सर्व लघु काल द्वारा सूक्ष्म निगोद जीवोंकी अवस्थामें ले जाकर अल्पतरकाल के भीतर ही पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण स्थितिकाण्डकघातोंके द्वारा अन्तःकोटाकोटि प्रमाण स्थितिसत्त्वका घात करके उसे सूक्ष्म निगोद जीवोंके स्थितिसत्त्वके समान करनेके लिये तथा बादर एकेन्द्रियके योगसे असंख्यातगुणे हीन ऐसे सूक्ष्म एकेन्द्रियके योग द्वारा बन्ध कराकर उदयमें लाकर बहुत प्रदेशोंकी निर्जरा कराने के लिये भी सर्वलघु कालमें पर्याप्तिको प्राप्त कराया है। ___ अन्तर्मुहूर्त कालके भीतर मरणको प्राप्त होकर सूक्ष्म निगोद पर्याप्त जीवोंमें उत्पन्न हुवा ॥ ६१॥ शंका- अपर्याप्त सूक्ष्म निगोदियोंको छोड़कर पर्याप्त सूक्ष्म निगोदियों में ही किसलिये उत्पन्न कराया है ? समाधान- नहीं, क्योंकि, अपर्याप्तकोंकी विशुद्धिसे अनन्तगुणी पर्याप्तविशद्धि द्वारा दीर्घ स्थितिकाण्डकों का घात कराने के लिये पर्याप्तकों में उत्पन्न कराया है। शंका- अपयाप्त योगकी अपेक्षा असंख्यातगुणे पर्याप्तयोगके द्वारा कर्मको प्रहण करनेवाले जीवका क्षपितकोशिकत्व क्यों नहीं नष्ट होता है ? समाधान- नहीं, क्योंकि, इसके पल्योपमके असंख्यातवे भाग प्रमाण यह , अल्पतर काल अपसर्पिणी काल के समान भुजाकार काल द्वारा अन्तरित होकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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