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२९०] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ १, २, ४, ६८. पदेससंतमसंखेज्जभागहीणं, सम्मत्ताणताणुबंधिविसंजोजणकिरियाहि विणासिदकम्मपदेसत्तादो। चादरपुढविपज्जत्ते मोत्तूण सुहमणिगोदेसु किण्ण उप्पाइदो ? ण, देवाणं तत्थाणतरमेव उवयादाभावादो । बादरवणप्फदिपत्तेयसरीरपज्जत्तएसु बादरआउप्पज्जत्तएसु वा किण्ण उप्पाइदो १ ण, तेसु उप्पाइज्जमाणस्स देवावसाणमिच्छत्तद्धाए बहुत्तेण विणा तस्थ उववादा. भावादो । कधमेदं णव्वदे ? एदम्हादो चेव सुत्तादो, अण्णहा बादरपुढविपज्जत्तएसुप्पत्तिणियमाणुववत्तीदो।
अंतोमुहुत्तेण सव्वलहुं सब्वाहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो ॥६॥
(बौदरपुढविकाइयपज्जत्तएंगताणुवड्ढिजोगेण आगच्छमाणपदेसादो सुहुमणिगोदपरिणामजोगेण संचिदगोउच्छा उदए गलमाणा संखेज्जगुणा, तदो संचयाभावादो।)
है, क्योंकि, पहले सम्यक्त्व व अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजन क्रिया द्वारा कर्मप्रदेशका विनाश किया जा चुका है।
__ शंका- बादर पृथिवीकायिक पर्याप्तोंको छोड़कर सूक्ष्म निगोद जीवों में क्यों महीं उत्पन्न कराया ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, देवों की उनमें देव पर्यायके अनन्तर ही उत्पत्ति सम्भव नहीं है।
__ शंका-बादर वनस्पसिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त अथवा बादर जल कायिक पर्याप्तकों में क्यों नहीं उत्पन्न कराया ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, उनमें यह जीव तभी उत्पन्न कराया जा सकता है जब इसके देव पर्यायके अन्तमें मिथ्यात्वकाल बहुत पाया जाय । उसके विना इसका वहां उत्पाद सम्भव नहीं है।
शंका - यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान- इसी सूत्रले जाना जाता है, अन्यथा बादर पृथिवीकायिक पर्याप्तकोंमें उत्पत्तिका नियम घटित नहीं होता है ।
सर्वलघु अन्तर्मुहूर्त कालमें सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ ॥ ६८॥
बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त सम्बन्धी एकान्तानुवृद्धियोगसे आनेवाले प्रदेशकी अपेक्षा सक्ष्म निगोद जीव सम्बन्धी परिणाम योगसे संचित गोपच्छा, जो कि उदयमें निर्जराको प्राप्त हो रही है, संख्यातगुणी है, क्योंकि, उससे संचय नहीं है (?)।
शंका- सर्वलधु कालमें पर्याप्तिको किसलिये प्राप्त कराया है ?
१ प्रतिषूपलम्यमानोऽयं कोष्ठकस्थः पाठोऽत्रासम्बद्धः प्रतिभाति ।
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