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४, २, ४, ६७.1 वेषणमहाहियारे वेयणदध्वविहाणे समित्तं
[२८९ तत्थ य भवहिदि दसवाससहस्साणि देसूणाणि सम्मत्तमणुपालइत्ता थोवावसेसे जीविदव्यए त्ति मिच्छत्तं गदो ॥६६॥
किमह सम्मतेण दसवाससहस्साणि हिंडाविदो ? ण, सम्माइट्ठिस्स सगहिदिसंतादो हेट्ठा बंधमाणस्स थोवहिदीसु हिदकम्मपदेसाणं बहुआणं णिज्जरुवलंभादो जिणपूजा-वंदणणमंसणेहि य बहुकम्मपदेसणिज्जवलंभादो च । संजदेसु संजदासंजदेसु वा अणंताणुपंधीओ किण्ण विसंजोजिदाओ ? तत्थ संजम संजमासंजमगुणसेडिणिज्जराणं परिहाणिप्पसंगादो । अवसाणे मिच्छत्तं किमिदि णीदो ? ण, अण्णहा एइंदिएसु उववादाभावादो ।
मिच्छत्तेण कालगदसमाणो बादरपुढविजीवपज्जत्तएसु उववण्णो ॥६७॥
देवेसु उप्पण्णस्स पढमसमयपदेससंतादो बादरपुढविपज्जत्तएमु उप्पण्णपढमसमय
वहां कुछ कम दस हजार वर्ष भवस्थिति तक सम्यक्त्वका पालन कर जीवितके थोड़ा शेष रहनेपर मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ ॥ ६६ ॥
शंका-सम्यक्त्वके साथ दस हजार वर्ष तक किसलिये धुमाया ?
समाधान--महीं, क्योंकि, सम्यग्दृष्टिके जितमा स्थितिसत्त्व होता है उससे स्थितिबन्ध कम होता है, अतः उसके स्तोक स्थितियों में स्थित बहुत कर्मप्रदेशाकी निर्जरा पाई जाती है तथा जिनपूजा, वन्दना और नमस्कारसे भी बहुत कर्मप्रदेशोंकी निर्जरा पायी जाती है । इसलिये उसे दस हजार वर्ष तक सम्यक्त्वके साथ घुमाया है।
शंका-- इस जीवके पहले मनुष्य पर्यायमें संयत अबस्थाके रहते हुए या संयतासंयत अवस्थाको प्राप्त करा कर अनम्तानुबम्धिचतुष्ककी घिसंयोजना क्यों नहीं कराया?
समाधान- यहां संयम और संयमासंयम गुणश्रेणिनिर्जराकी हानिका प्रसंग आनेसे अनन्तानुबन्धिचतुष्ककी विसंयोजना नहीं करायी ।
शंका- अन्तमें मिथ्यात्वको क्यों प्राप्त कराया है ?
समाधान - नहीं, क्योंकि, ऐसा किये बिना एकेन्द्रियों में उत्पन्न होना सम्भव नहीं है।
मिथ्यात्वके साथ मृत्युको प्राप्त होकर षादर पृथिवीकायिक पर्याप्त जीवोंमें उत्पन्न हुआ ॥ ६७ ॥
देवोंमें उत्पन्न हुए उक्त जीवके प्रथम समय सम्बन्धी प्रदेशसत्त्वसे बादर पृथिवीकायिक पर्याप्तों में उत्पन्न होने के प्रथम समयमें प्रदेशसत्त्व असंण्यातवां भाग कम
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