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२८८ ) छक्खंडागमे वेयणाखंडं
[ ४, २, ४, ६५ एस्थ वेदगसम्मत्तं चेव एसो पडिवज्जदि उवसमसम्मत्ततरकालस्स पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागस एत्थाणुवलभादो। तदो अंतोमुहुत्तं गंतूण अणताणुबंधीणं विसंजोजणमाढवेदि'। तत्थ अधापवत्त अपुव्व-अणियट्टिकरणाणि तिणि वि करेदि । एत्थ अधापवत्तकरणे णत्थि गुणसेडी। कुदो ? साभावियादो । अपुव्वकरणपढमसमयप्पहुडि पुवं व उदयावलियबाहिरे गलिदसेसमपुव्व-अणियट्टिकरणद्धादो विसे साहियमायामेण पदेसग्गेण संजदगुणसेडिपदेसग्गादों असंखेज्जगुणं तदायामाद। संखेज्जगुणहीणं गुणसेडिं करेदि । ठिदि-अणुभागखंडयघादे आउअवज्जाणं कम्माणं पुव्वं व करेदि । एवं दोहि वि करणेहि काऊण अणंताणुबंधिचउक्कविदीओ उदयावलियबाहिराओ सेसकसायसरूवेण संहदि । एसा अणताणुबंधिविसंजोजणकिरिया । जं संजदेण देसूणपुव्वकोडिसंजमगुणसेडीए कम्मणिज्जरं कदं तदो असंखेज्जगुणकम्ममेसो णिज्जरेदि । कथमेदं णव्वदे ? अणंतकम्मसे त्ति गाहासुत्सादो।
यहां यह वेदकसम्यक्त्वको ही प्राप्त करता है, क्योंकि, उपशमसम्यग्दर्शनका अन्तरकाल जो पल्यका असंख्यातवां भाग है वह यहां नहीं पाया जाता । पश्चात् अम्तमुहूर्त विताकर अनन्तानुपम्धियोंके विसंयोजनको प्रारम्भ करता है। वहां अधःप्रवृत्तकरण, अर्पूवकरण और अनिवृत्तिकरण इन तीनों ही करणोंको करता है। यहां अधःप्रवृत्तकरणमें गुणश्रेणि नहीं है, क्योंकि, ऐसा स्वभाव है। अपूर्वकरणके प्रथम समयसे लेकर पहिलेके समान उदयावलीके बाहर आयामकी अपेक्षा अपूर्व व अनिवृत्ति करणके कालसे विशेष अधिक प्रदेशाग्रकी अपेक्षा संयतगुणश्रेणिके प्रदेशाग्रसे असंख्यातगुणी, किन्तु उसके आयामले संख्यातगुणी हीन ऐसी गलितशेष गुणश्रेणि करता है । आयुको छोड़कर शेष कर्मोका स्थितिकाण्डकघात और अनुभागकाण्डकघात पहिलेके ही समान करता है। इस प्रकार दोनों ही करणों द्वारा करके अनन्तानुबन्धिचतुष्ककी उदयावलीके बाहरकी सब स्थितियोंको शेष कषायोंके रूपसे परिणमाता है। यह अनन्तानुबन्धीके विसंयोजनकी क्रिया है। संयतने कुछ कम पूर्वकोटि प्रमाण संयमगुणश्रेणि द्वारा जो कर्मनिजरा की, उससे यह असंख्यातगुणी कर्मनिर्जरा करता है।
शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान- 'अणंतकम्मंसे' अर्थात् अनन्तानुबन्धीका विसंयोजन करनेवालेके संयतकी अपेक्षा असंख्यातगुणी कर्मनिर्जरा होती है, इस गाथासूत्रसे जाना जाता है ।
१ अ-आप्रत्योः 'मोददिति पाठः । १म-आ-का-ताप्रतिषु डिप्षसंगादो' इति पाः।
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