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१, २, ४, ६५.] यणमहाहियारे वेयणदयविहाणे सामित्त [२८७ उप्पाइदो ? ण, खविदकम्मंसियभुजगारकालादो अप्पदरकालो बहुगो त्ति तत्थ तेत्तियमेत्तकालं हिंडंतस्स लाभदसणादो। दसवाससहस्सादो हेडिमआउएसु किण्ण उप्पाइदो ! ण, देवेसु तत्तो हेट्ठिमआउषियप्पाभावाद।।।
अंतोमुहुत्तेण सब्बलहुं सव्वाहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो॥६४॥
देवेसु छपज्जत्तिसमाणकालो जहण्णओ वि अस्थि, उक्कस्सओ वि । तत्थ सम्वअहण्णण कालेण पज्जतिं गदो। अप्पज्जत्तजोगेण आगच्छमाणणवकबंधादो उदए गलमाणगोउच्छाओ बहुगाओ, परिणामजोगेण संचिदत्तादो। तो आयादो णिज्जरा बहुवा ति कटु सव्वलहं पज्जत्ती ण णिज्जदे ? ण, एइंदियपरिणामजोगादो असंखज्जगुणेण पंचिंदियएयंताणुवड्डिजोगेण आगच्छमाणदचस्स थोवत्तविरोहादो । तेण सव्वलहुं पज्जत्ति गदो; अण्णहा बहुसंचयप्पसंगादो । ___ अंतोमुहुत्तेण सम्मत्तं पडिवण्णो ॥ ६५ ॥
समाधान-नहीं, क्योंकि, क्षपितकर्माशिकके भुजाकारकालसे अल्पतरकाल बहुत है, अतः वहां उतने मात्र काल घूमनेवालेके लाभ देखा जाता है।
शंका - दस हजार वर्षसे कम आयुवालोंमें क्यों नहीं उत्पन्न कराया ?
समाधान--नहीं, क्योंकि, देवोंमें इससे नीचेके आयुविकल्प नहीं पाये जाते; अर्थात् उनमें दस हजार वर्षसे कम आयु सम्भव ही नहीं है।
सर्वलघु अन्तर्मुहूर्त कालमें सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ ॥ ६४ ॥
देवोंमें छह पर्याप्तियोंकी पूर्णताका काल जघन्य भी है और उत्कृष्ट भी है। उनमें सर्वजघन्य कालसे पर्याप्तिको प्राप्त हुआ।
शंका-अपर्याप्त योगसे जो नवकबन्ध होता है उससे उदयको प्राप्त होकर निजीर्ण होनेवाली गोपुच्छायें बहुत हैं, क्योंकि, उनका संचय परिणाम योगसे हुआ है। इसलिये आयकी अपेक्षा निर्जरा बहुत होनेके कारण सर्वलघु कालमें पर्याप्तियोंको नहीं प्राप्त कराना चाहिये? . समाधान- नहीं, क्योंकि, पंचेन्द्रिय सम्बन्धी एकान्तानुवृद्धि योग एकेन्द्रियके परिणाम योगसे असंख्यातगुणा है, इसलिये उसके द्वारा आनेवाले द्रव्यको स्तोक मानने विरोध आता है । अत एव सर्वलघु कालमें पर्याप्तिको प्राप्त हुआ, अभ्यथा बहुत संचय होनेका प्रसंग आता है।
अन्तर्मुहुर्तमें सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ ॥ ६५ ॥
१ प्रतिषु 'पजत्तीए -' इति पाठः ।
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