________________
२८६) छक्खडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, ४, ६३. संचयादो संजमगुणसेडीए एगसमयणिज्जरिददबस्स असंखेज्जगुणतुवलंभादो। तदो मिच्छत्तं गंतूण सव्वलहुं अंतोमुहुत्तमच्छिदो ति भणिदं होदि ।
मिच्छत्तेण कालगदसमाणो दसवाससहस्साउट्ठिदिएसु देवेसु उववण्णो ॥६३॥
ताधे पलिदोवमस्स असंखज्जदिभागेणूणकम्महिदीए सुहमणिगोदसु संचिठ्वं भोकड्डुक्कडणभागहारादो असंखेज्जगुणेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण खंडिदे तत्व एगखंडेण ऊणं होदि, सम्मत्त-संजमगुणसेडीहि णवकबंधादो असंखेज्जगुणाहि णहदष्वसादो। बद्धदेवाउओ संजदो मिच्छतस्स णेदवो । अपद्धदेवाउसंजदो मिच्छतं किण्ण णीदो १ ण, मिच्छत्तं गंतुण आउए पज्झमाणे आउअबंधगद्धाविस्समणकालहि कीरमाणसंजदगुणसेडीए अभावप्पसंगादो । पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेणूणकम्महिदीए विणा सुहुमणिगोदेसु पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागमेत्तअप्पदरकालं हिंडाविय मणुसेसु किण्ण
............
द्रव्यसे संयमगुणश्रेणि द्वारा एक समय में निर्जराको प्राप्त हुआ द्रव्य असंख्यातगुणा पाया जाता है । इसलिये मिथ्यात्मको प्राप्त होकर सबलघु अन्तर्मुहूर्त काल तक यहां रहा, ऐसा कहा है।
मिथ्यात्वके साथ मरणको प्राप्त होकर दस हजार वर्ष प्रमाण आयुस्थितिवाले देवोमें उत्पन्न हुआ ॥ ६३ ॥
उस समय पल्योपमका असंख्यातवां भाग कम कर्मस्थिति प्रमाण कालके भीतर सूक्ष्म निगोदमें जितने द्रव्यका संचय हुआ था उससे, अपकर्षण-उत्कर्षणभागहारसे भसंख्यातगुणे बड़े पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण भागहारका भाग देनेपर जो एक भाग लब्ध आवे, उतना कम होता है, क्योंकि, नघकबन्धसे असंख्यातगुणी सम्यक्त्व व संयम सम्बन्धी गुणश्रेणियों द्वारा द्रव्य नष्ट हो चुका है। जिसने देवायुको बांध लिया है ऐसे संयतको ही मिथ्यात्वमें ले जाना चाहिये ।।
शंका-भबद्धदेवायुष्क संयतको मिथ्यात्वमें क्यों नहीं ले गये ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, इस प्रकारले मिथ्यात्वको प्राप्त होकर आयुका बम्ध करमेपर आयुबम्धककाल और विश्रामकालके भीतर जो संयमगुणश्रेणि होती है उसके मभावका प्रसंग आता है, अतः बद्धदेवायुष्क संयतको ही मिथ्यात्वमें ले गये हैं।
शंका--इस जीवको सूक्ष्म निगोदमें जो पल्योपमका असंख्याता भाग कम कर्मस्थिति प्रमाण काल तक घुमाया है सो इतना न घुमा कर केवल पल्योपमके मसंण्यातवें भाग मात्र अल्पतर काल तक घुमा कर मनुप्या में क्यों नहीं उत्पन्न कराया ?
१ प्रतिषु ' एनसमयसंजमः' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org