________________
४, २, ४, ६२ ] वेयणमहाहियारे वेयणदविहाणे सामित्त
२८५ इंदियउप्पत्तिपाओग्गमिच्छत्तद्धा संखेज्जगुणा । सुहमेइंदिय उप्पत्तिपाओग्गमिच्छत्तद्धा संखेज्जगुणा त्ति। एत्थ एदाओ सव्वद्धाओ परिहरिदूण देवगदिसमुप्पत्तिपाओग्गमिच्छत्तकाले सेसे मिच्छत्तं गदो त्ति जाणावणटुं सव्वत्थोवाए मिच्छत्तस्स असंजमद्धाएं अच्छिदो त्ति भणिदं होदि। संजदस्स मिच्छतं गंतूण देवगदीए उप्पज्जमाणस्स मिच्छत्तेण सह अच्छणकालो जहण्णओ वि उक्कस्सओ वि अस्थि । तत्थ जहण्णकालमच्छिदो त्ति उत्तं होदि। कधमेदं णव्वदे? एदम्हादो चव उभयत्थसूचयसुत्तादो । किमर्ट मिच्छत्तस्स थोवासंजमद्धाए सेसाए मिच्छत्तं णीदो ? बहुकालं संजमगुणसेडीए पदेसणिज्जरणटुं। ण च पुवमेव मिच्छत्तं गदस्स गुणसेडिणिज्जराकालो बहुगो लब्भदि, तस्स अंतोमुहुत्तेण ऊणतुवलंभादो। दसवाससहस्सेसु संचिददव्वादो अतोमुहुत्तकालं गुणसेडीए णिज्जरिददव्वं थोवं । तदो दसवाससहस्सियदेवेसु अणुप्पाइय पुव्वमेव मिच्छत्तं दूण बादरेइंदिएसु उप्पादेदव्यो त्ति भणिदे-ण, दसवाससहस्स
एकेन्द्रियों में उत्पत्ति योग्य मिथ्यात्वकाल संख्यातगुणा है। यहां इन सब कालाको छोड़कर देवगतिमै उत्पत्ति योग्य मिथ्यात्वकालके शेष रहनेपर मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ, इस बातके ज्ञापनार्थ 'मिथ्यात्व सम्बन्धी सबसे स्तोक असंयमकालमें रहा' ऐसा कहा है । मिथ्यात्वको प्राप्त होकर देवगतिमें उत्पन्न होनेवाले संयतका मिथ्यात्वके साथ रहनेका काल जघन्य भी है और उत्कृष्ट भी है। उसमें जघन्य काल तक रहा, यह अभिप्राय है। . शंका- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान- वह इसी उभय अर्थके सूचक सूत्रसे जाना जाता है।
शंका-मिथ्यात्व सम्बन्धी स्तोक असंयमकालके शेष रहनेपर मिथ्यात्वको किसलिये प्राप्त कराया है ?
समाधान-संयम सम्बन्धी गुणधेणिके द्वारा बहुत काल तक कर्मप्रदेशोंकी निर्जरा करानेके लिये मिथ्यात्व सम्बन्धी स्तोक असंयमकालके शेष रहनेपर मिथ्यात्वको प्राप्त कराया है। यदि कोई इससे पहले मिथ्यात्वको प्राप्त हो जाय सो उसके गुणश्रेणिनिर्जराका काल बहुत नहीं पाया जा सकता, क्योंकि, वह अन्तर्मुहूर्तसे कम हो जाता है।
शंका-चूंकि दस हजार वर्ष आयुवाले देवोंमें संचित द्रव्यकी अपेक्षा अन्तमुंहत कालमें गुणश्रेणि द्वारा निर्जराको प्राप्त हुआ द्रव्य स्तोक है, अतः दस हजार घर्ष आयुवाले देवोम न उत्पन्न कराकर देवगतिमें उत्पत्तिके योग्य मिथ्यात्वकालसे पहले ही मिथ्यात्वको प्राप्त कराके बादर एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न कराना चाहिये?
समाधान-नहीं, क्योंकि, दस हजार वर्षकी आयुघाले देवोंमें संचित हुए
१ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-भा-काप्रतिषु 'सम्वत्थाओ परिहाइदण', ताप्रती सम्बाओ परिहाइदण' इति पाठ। २भ-आ-काप्रतिषु ' असंखेग्जमाए' इति पाठः। ३ अ-आप्रलोः 'णिग्जरिदब्वं इति पाठ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org