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२८.] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[१, २, ४, ६२. करेदि जाव एयंतवठ्ठीएं चरिमसमओ त्ति । तदो उवरि णियमेण हाणी होदि । ततो उवरि गुणसेढिदव्वं वदि हायदि अवठ्ठायदि वा, संजमपरिणामाणं वड्डि-हाणि अवट्ठाणणियमाभावादो । अणेण विहाणेण भवहिदि पुवकोडिं देसूर्ण संजममणुपालइत्ता अंतोमुहुत्तावसेसे मिच्छतं गदो । पुवकोडिचरिमसमओ त्ति गुणसेडिणिज्जरा किण्ण कदा १ ण, सम्मादिहिस्स भवणवासियवाण-तर-जोइसिएसु उप्पत्तीए अभावादो, दिवड्डपलिदोवमाउँद्विदिएसु सोहम्मदेवेसुप्पण्णस्स दिवड्डगुणहाणिमेत्तपचिदियसमयपबद्धाणं संचयप्पसंगादो ।
सव्वत्थोवाए मिच्छत्तस्स असंजमद्धाए अच्छिदो ॥६२॥
एत्थ अप्पाबहुअं- सव्वत्थोवो देवगदिपाओग्गमिच्छत्तकालो । मणुसगदिपाओग्गमिच्छत्तद्धा संखेज्जगुणा । सण्णितिरिक्खपाओग्गमिच्छत्तद्धा संखेज्जगुणा। असण्णिपाओग्गमिच्छत्तद्धा संखेज्जगुणा। चउरिदियउप्पत्तिपाओग्गमिच्छत्तद्धा संखेज्जगुणा। तेइंदियउप्पत्तिपाओग्गमिच्छत्तद्धा संखेज्जगुणा । बीइंदिय उप्पत्तिपाओग्गमिच्छत्तद्धा संखेज्जगुणा । बादरे
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समय तक गुणश्रेणि करता है। उसके आगे मियमसे हानि होती है । पश्चात् उसके मागे गुणश्रेणिद्रव्य बढ़ता है, घटता है, अथवा अवस्थित भी रहता है, क्योंकि, वहां संयम-परिणामोंकी वृद्धि, हानि अथवा अवस्थानका कोई नियम नहीं है। इस विधानसे कुछ कम पूर्वकोटि प्रमाण भवस्थिति काल तक संयमको पालकर अन्तर्मुहूर्त शेष रहनेपर मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ।
शंका- पूर्वकोटिके अन्तिम समय तक गुणश्रेणि निर्जरा क्यों नहीं की ?
समाधान- नहीं, क्योंकि सम्यग्दृष्टिकी भवनवासी, घानव्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें उत्पत्ति सम्भव नहीं है । यदि डेढ़ पल्यकी स्थितिवाले सौधर्म व ईशान कल्पके देवों में उत्पन्न होता है तो उसके डेढ़ गुणहानि मात्र पंचेन्द्रिय सम्बन्धी समयबद्धोंके संचयका प्रसंग आता है।
मिथ्यात्व सम्बन्धी सबसे स्तोक असंयमकालमें रहा ॥ ६२ ॥
यहां अल्पबहुत्व- देवगतिमें उत्पत्तिके योग्य मिथ्यात्वकाल सबसे स्तोक है। उससे मनुष्यगतिमें उत्पत्तिके योग्य मिथ्यात्वकाल संख्यातगुणा है। उससे संशी तिर्यंचों में उत्पत्ति योग्य मिथ्यात्वकाल संख्यातगुणा है । उससे असंशियों में उत्पत्ति योग्य मिथ्यात्वकाल संख्यातगुणा है। उससे चतुरिन्द्रियों में उत्पत्ति योग्य मिथ्यात्वकाल संख्यातगुणा है। उससे श्रीन्द्रियों में उत्पत्ति योग्य मिथ्यात्वकाल संख्यातगुणा है। उससे द्वीन्द्रियों में उत्पत्ति योग्य मिथ्यात्वकाल संख्यातगुणा है। उससे बावर एकेन्द्रियों में उत्पात योग्य मिथ्यात्वकाल संख्यातगुणा है। उससे सूक्ष्म
१ अ-आ-काप्रतिषु ' एयंतबड्ढावटीए', ताप्रती · एवंतवदा ( एयंताप) नदीए ' इति पाई। २ काप्रती · पिनटगुणसेडीपलिदोवमाउ' इति पाठः ।
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