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________________ १, ४, ६०. ] वैयनमहाहियारे देयणदम्बविहाणे सामितं [ २०५ गदेसु संजमग्गहणपाओग्गो होदि, हेट्ठा ण होदि त्ति एसो भावत्थो । गन्भाम्म पदिदपडमसमय पहुड अट्ठवस्से गदेसु संजमग्गहणपाओग्गो होदि त्ति के वि भणेति । तण्ण षडदे, जोणिणिक्खमण जम्मणेणेत्ति वयणण्णहाणुववसीदो । जदि गम्भम्मि पदिद पढमसमयादो अवस्साणि घेष्पति तो गन्भवदणजम्मणेण अट्टवस्सीओ जादो त्ति सुत्तकारो भणेज्ज । प च एवं तम्हा सत्तमा साहियअट्ठहि वासेहिं संजमं पडिवज्जदि त्ति एसो चेव अत्थो श्रेत्तम्वोः सब्वलहुणिद्देसण्णहाणुववत्तदो । संजमं पडिवण्णो ॥ ६० ॥ जं सुहुमणिगोदो पलिदोषमस्स असंखेज्जदिभागेण कालेज कम्मसंचयं करेदि तं बादर पुढविकाइयपज्जत्तो एगसमएण संचिणदि । जं बादरपुढविकाइयपज्जत्तो पलिदोवमस्स भसखज्जदिभागेण कालेन कम्मसंचयं करदि तं मणुसपज्जत्तो एगसमएण संचिणदि । तदो बादरपुढविकाइयपज्जत्तरसु' उप्पाइय कम्मसंचयं करिय पुणो मणुस्सेसु उप्पाइय अड्डवस्साथि सादिरेयाणि कम्मसंचयं करिय पुणो दसवासस हस्सियदेवेसु उप्पाइय कम्मसंचयं करिय हुआ । गर्भ से निकलनेके प्रथम समय से लेकर आठ वर्ष बीत जानेपर संयम ग्रहण के योग्य होता है, इसके पहिले संयम ग्रहण के योग्य नहीं होता, यह इसका भाषार्थ है । गर्भ में आनेके प्रथम समयसे लेकर आठ वर्षोंके वीतनेपर संयम ग्रहण के योग्य होता है. ऐसा कितने ही आचार्य कहते हैं । किन्तु वह घटित नहीं होता, क्योंकि, ऐसा माननेपर योनिनिष्क्रमण का जन्मसे यह सूत्रवचन नहीं बन सकता। यदि गर्भ में आनेके प्रथम समयसे लेकर आठ वर्ष ग्रहण किये जाते हैं तो 'गर्भपतन रूप जन्मले आठ वर्षका हुआ ' ऐसा सूत्रकार कहते । किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं कहा है। इसलिये सात माल अधिक आठ वर्षका होनेपर संयमको प्राप्त करता है, यही अर्थ ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि, अन्यथा सूत्रमें ' सर्वलघु ' पदका निर्देश घटित नहीं होता । संयमको प्राप्त हुआ ॥ ६० ॥ शंका- सूक्ष्म निगोद जीव पल्योपमके असंख्यातवें भाग कालके द्वारा जितना कर्मका संचय करता है उसे बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त जीव एक समय में संचित करता है। बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त जीव पस्योपमके असंख्यातवें भाग काल द्वारा जितना कर्मसंचय करता है उसे मनुष्य पर्याप्त एक समय में संचित करता है । इसलिये बादर पृथिवीकायिक पर्याप्तकोंमें उत्पन्न कराकर कर्मसंचय कराके पश्चात् मनुष्यों में उत्पन्न कराकर कुछ अधिक आठ वर्षोंमें कर्मसंचय कराक पश्चात् दस हजार वर्षकी भायुवाले देवोंमें उत्पन्न कराकर कर्मसंचय कराके सूक्ष्म निगोदजीवोंमें उत्पन्न करानेंमें कोई लाभ नहीं है ? · १ वर्षातिषामेध्वम् । अन्ना का पापड For Private & Personal Use Only Jain Education International • रवि पाहा । www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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