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वेयण - णयविभासणदा
( वेयण-यविभासणदाए को णओ काओ वेयणाओ इच्छदि ? ॥ १ ॥ )
वेणणयविभासणदाए त्ति अहियार संभालणवयणं । को णओ इच्छदि ति गेंद पुच्छासुत्तं, किंतु चालणासुतं । सा च चालणा जाणिय कायव्वा ।
स्वतंत्र रूपसे वेदना ऐसा नामकरण ही नामवेदना है । किसी पदार्थमें ' वेदना 'ऐसी स्थापना करना स्थापनावेदना है। इसके सद्भावस्थापना और असद्भावस्थापना ऐसे दो भेद हैं । सद्भाव स्थापना तदाकार पदार्थमें की जाती है और असद्भावस्थापना अतदाकार पदार्थ में की जाती है । जो पदार्थ वेदनासे लगभग मिलता-जुलता है उसमें ' वेदना ' ऐसी स्थापना करना सद्भाव स्थापनावेदना है, और जो पदार्थ वेदनासे मिलता-जुलता नहीं है उसमें 'वेदना' ऐसी स्थापना करना असद्भावस्थापनावेदना है । द्रव्यवेदनाका निर्देश सुगम है। फिर भी नोआगमद्रव्यवेदनाके तद्व्यतिरिक्त के भेदोंपर प्रकाश डालना आवश्यक है। इसके दो भेद हैं-कर्म और नोकर्म । बन्धसमय से लेकर उदयके पूर्व तकके कर्मको कर्म-तद्व्यतिरिक्त-नोआगमद्रव्यवेदना इसलिये कहते हैं क्योंकि ये जीवोंके विविध अवस्थाओं व विविध प्रकारके परिणामोंके होने में तथा शरीर, वचन व मनके होनेमें भविष्य में निमित्त कारण होंगे। इसलिये ये तद्व्यतिरिक्तके अवान्तर भेद रूपसे द्रव्यकर्म कहे जाते हैं । तथा नाकर्म इस दूसरे भेदसे इनके सहकारी कारण लिये जाते हैं । जो स्त्री, पुत्र, धनादि भविष्य में कर्मके उदय में सहायक होते हैं वे तद्व्यतिरिक्त के दूसरे भेद नोकर्म हैं। इनका स्पष्ट उल्लेख कर्मकाण्ड में किया है । भाववेदना में दूसरे भेद नोआगमभाववेदनाका जो अजीवभाववेदना है उसके दो भेद हैं- औदयिक और पारिणामिक । सो इनमेंसे औदयिक भेद द्वारा पुद्गलविपाकी कर्मोंके उदयसे जो रूप-रसादि रूप परिणमन होता है वह लिया गया है और पारिणामिक भेद द्वारा शेष पुद्गलोका रूप रसादि रूप परिणमन लिया गया है, यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
इस प्रकार वेदना निक्षेप अनुयोगद्वार समाप्त हुआ ।
अब वेदन-नयविभाषणताका अधिकार है। कौन नय किन वेदनाओंको स्वीकार करता है ? ॥ १ ॥
'वेदन- नयविभाषणता ' यह अधिकारका स्मरण करानेवाला वचन है । 1 कौन नय स्वीकार करता है ' यह पृच्छासूत्र नहीं है, किन्तु चालनासूत्र है । वह चालना जानकर करना चाहिये ।
छ. बे. २.
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