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________________ छक्खंडागमे वेयणाखंड [१, २, १, ३. भाववेयणा आगम-णोआगमभेएण दुविहा । तत्थ वेयणाणियोगद्दारजाणओ उवजुत्तो आगमभाववेयणा । अपरा दुविहा जीवाजीवभाववेयणाभेएण । तत्थ जीवभाववेयणा ओदइयादिभेएण पंचविहा । अट्ठकम्मजणिदा आदइया वेयणा । तदुवसमजणिदा अउवसमिया । तक्खयजणिदा खइया । तेसिं खओवसमजणिदा ओहिणाणादिसरूवा खवोवसमिया । जीवभविय-उवजोगादिसरूवा पारिणामिया । सुवण्ण-पुत्त-ससुवण्णकण्णादिजणिदवेयणाओ एदासु चेव पंचसु पविसति त्ति पुध ण वुत्ताओ । जा सा अजीवभाववेयणा सा दुविहा ओदइया पारिणामिया चेदि । तत्थ एक्केक्का पंचरस-पंचवण्ण-दुगंधट्ठफासादिभेएण अणेयविहा । एवमेदेसु अत्थेसु वेयणासद्दो वट्टदि त्ति केण अत्थेण पयदमिदि ण णवदे । सो वि पयदत्थो णयगहणम्मि णिलीणो त्ति ताव णयविभासा कीरदे । एवं वेयणणिक्खेवे त्ति समत्तमणियोगद्दारं । भाववेदना आगम और नोआगमके भेदसे दो प्रकारकी है। उनमेंसे जो वेदनानुयोगद्वारका जानकार होकर उसमें उपयोग युक्त है वह आगमभाववेदना है। नोआगमभाववेदना जीवभाववेदना और अजीवभाववेदनाके भेदसे दो प्रकारकी है। उनमेंसे जीवभाववेदना औदयिक आदिके भेदसे पांच प्रकारकी है। आठ प्रकारके कोके उदयसे उत्पन्न हुई वेदना औदयिक वेदना है । कर्मोंके उपशमसे उत्पन्न हुई वेदना औपशमिक वेदना है । उनके क्षयसे उत्पन्न हुई वेदना क्षायिक वेदना है। उनके क्षयोपशमसे उत्पन्न हुई अवधिज्ञानादि स्वरूप वेदना क्षायोपशमिक वेदना है। और जीवत्व,भव्यत्व व उपयोग आदि स्वरूप पारिणामिक वेदना है। सुवर्ण, पुत्र व सुवर्ण सहित कन्या आदिसे उत्पन्न हुई वेदनाओंका इन पांच में ही अन्तर्भाव हो जाता है, अतः उन्हें अलगसे नहीं कहा है। और जो पहिले अजीवभाववेदना कही है वह दो प्रकारको है-औदयिक और पारिणामिक । उनमें प्रत्येक पांच रस, पांच वर्ण, दो गन्ध और आठ स्पर्श आदिके भेदसे अनेक प्रकारकी है। इस प्रकार इन अर्थों में वेदना शब्द वर्तमान है। किन्तु यहां कौनसा अर्थ प्रकृत है, यह नहीं जाना जाता है । वह भी प्रकृत अर्थ नयग्रहणमें लीन है । अत एव प्रथम नय. विभाषा की जाती है। विशेषार्थ -- यहां सर्व प्रथम वेदनानिक्षेप इस अधिकारका निर्देश किया गया है। वेदनानिक्षेप चार प्रकारका है-नामवेदना, स्थापनावेदना, द्रव्यवेदना और भाववेदना । निक्षेपके यद्यपि और अनेक भेद हैं, पर सूत्रकारने मुख्य रूपसे चारका ही ग्रहण किया है । शेषका ग्रहण देशामर्शक भावसे हो जाता है । बाह्य अर्थके आलम्बनके बिना वेदना यह शब्द नामवेदना है। इसमें वेदना शब्दकी ही प्रमुखता है। तात्पर्य यह है कि किसी अन्य पदार्थका वेदना ऐसा नाम रखना यहां नामवेदना विवक्षित नहीं है, किन्तु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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