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छक्खंडागमे वेयणाखंड [ १, २, ४, ५१. दीहाओ अपज्जत्तद्धाओ रहस्साओ पज्जत्तद्धाओ॥५१॥
खविद-गुणिद-घोलमाणअपज्जत्तद्धास्तिो खचिदकम्ममियअपज्जत्तद्धा दीहाओ, तेसिं पज्जतद्धाहिंतो एदस्स पज्जत्तद्धाओ रहस्साओ ति घेत्तव्वं । किमट्ठमपज्जत्तएसु दीहाउएसु चेव उप्पाइज्जदे ? पज्जत्तजोगादो असंखज्जगुणहीणेण अपज्जतजोगेण थोवकम्मपदेसग्गहणटुं । तत्थ वि एयंताणुवड्डिजोगकालो बहुगो, परिणामजोगादो एयंताणुवटिजोगस्स असंखज्जगुणहीणत्तादो । सुहुमेइंदियपज्जत्ताणमाउअहिदीदो तेसिं चेव अपज्जत्ताणमाउहिदी बहुगा त्ति किण्ण उच्चदे ? ण, अपज्जत्ताणं आउहिदीदो पज्जत्ताउअहिदी बहुगा त्ति कालविहाणे उवदिद्वत्तादो। एसो अद्धावासो परूविदो।
जदा जदा आउअंबंधदि तदा तदा तप्पाओग्गुक्कस्सजोगेण बंधदि ॥ ५२ ॥
किमट्ठमुक्कस्सजोगेण आउअं बज्झदे ? णाणावरणस्स आगच्छमाणसमयपषन्द्र
अपर्याप्तकाल बहुत और पर्याप्तकाल थोड़ा है ।। ५१ ॥
क्षपित-मुणित घोलमान अपर्याप्तके कालसे क्षपितकौशिक अपर्याप्तका काल दीर्घ है और उनके पर्याप्तकालसे इसका पर्याप्तकाल थोड़ा है; ऐसा यहां ग्रहण करना चाहिये।
शंका- दीर्घ आयुवाले अपर्याप्तकों में ही किसलिये उत्पन्न कराया जाता है ?
समाधान- पर्याप्त योगसे असंख्यातगुणे हीन अपर्याप्त योगके द्वारा स्तोक कर्मप्रदेशाका ग्रहण करानेके लिये दीर्घ आयुवाले अपर्याप्तकोंमें ही उत्पन्न कराया है ?
वहां भी एकान्तानुवृद्धि योगका काल बहुत है, क्योंकि, परिणाम योगसे एकान्तानुवृद्धि योग असंख्यातगुणा हीन है।
शंका --- सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकोंकी आयुस्थितिसे उम्हीके अपर्याप्तकोंकी भायुस्थिति बहुत है, ऐसा यहां क्यों नहीं कहते ?
समाधान नहीं, क्योंकि, कालानुयोगद्वारमें अपर्याप्तकोंकी आयुस्थितिसे पर्याप्तकोंकी आयुस्थिति बहुत है, ऐसा कहा है।
यह अद्धाचासकी प्ररूपणा की। जब जब आयुको बांधता है तब तब उसके योग्य उत्कृष्ट योगसे बांधता है ॥५२॥ शंका-उत्कृष्ट योगसे आयुको किसलिये बांधता है ?
समाधान-शानावरणके आनेवाले समयमयद्ध सम्बन्धी परमाणुओंको स्तोक करनेके लिये आयु कर्मको उत्कृष्ट योगसे बांधता है।
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