SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४, २, ४, १७ ] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे समित्त [२६१ तिभागम्मि जोगोलंषणाकरणवसेणूणं करिय जलचराउअं बंधाविय कमेण जलचरेसुप्पज्जिय पज्जत्तीओ समाणिय कदलीघादेण विणा कदलीघादपढमसमए ठिदस्स दव्वं सरिसं होदि । अधवा, परमवियाउअस्स उक्कस्सबंधगद्धामेत समया उक्कस्सजोगट्ठाणादो जाव जहण्णजोगट्ठाणं ति जहा उत्ता ठिदा तहा पुवकोडितिभागम्मि बंधे भुंजमाणाउपाडेबद्ध उक्कस्साउअधगद्धामेत्तसमया वि जोगोलंबणकरणे अस्सि दूण उक्कस्सजोगट्ठाणादो तप्पाओग्गअसंखेज्जगुणहीणजोगेत्ति ओदारेदध्वा । एवमोदारिय पुणो पच्छा एगविगिदिगोवुच्छाए ऊणेगसमयपद्धम्मि जत्तिया सयलपक्खेया अस्थि तत्तियमेतदव्वेण भुंजमाणाउअमूर्ण करिय ठिदो च अण्णेगो पुत्रकोडितिभागम्मि उक्कस्सबंधगद्धाए तपाओग्गजहण्णजोगेण य आउअं बंधिय जलचरेसुप्पज्जिय कदलीघादं काऊण जहणजोगेण समऊणुक्कस्सबंधगद्धाए च परभविथमाउअंबंधिय ठिदो' च दो वि सरिसा । एवं जाणिदण परभवियाउअबंधगद्धं जहणं करिय ठिो च अण्णगो पगदिगोउच्छाहियदोहि वि दवेहि समाणं पुवकोडितिभागम्मि आउअं बंधिय जलचरेसुप्पज्जिय कदलीघाद पूर्वकोटिके त्रिभागमें योग और अघलम्बन करण द्वारा हान करके जलचरोंमें आयुको बंधाकर क्रमले जलचरोंमें उत्पन्न होकर पर्याप्तियोंको पूर्ण करके कदलीघाप्तके विना कदलीघातके प्रथम समयमें स्थित हुए जीवका द्रव्य, सदृश होता है । अथवा, परभविक आयुके उत्कृष्ट बन्धककाल मात्र जो समय है वे उत्कृष्ट योगस्थानले लेकर जघन्य योगस्थान तक जैसे कहे गये स्थित हैं वैसे ही पूर्वकोटिके त्रिभागमें बन्धके समय भुजमान आयुके प्रतिबद्ध उत्कृष्ट आयुके बम्धककाल प्रमाण समयोंको भी योग और अवलम्बन करणका आश्रय कर उत्कृष्ट योगस्थानसे लेकर उसके योग्य असंख्यातगुणे हीम योग तक उतारना चाहिये । इस प्रकार उतार कर फिर पीछे एक विकात गोपुच्छसे हीन एक समयप्रबद्ध में जितने सकल प्रक्षेप है उत्तन मात्र द्रव्यसे भुज्यमान आयुको कम करके स्थित हुआ जीव, तथा पूर्वकोटिके त्रिभागमै उत्कृष्ट बन्धककाल द्वारा व उसके योग्य जघन्य योग द्वारा आयुको बांधकर जलचरोंमें उत्पन्न होकर कदलीघात करके जघन्य योग व एक समय कम उत्कृष्ट गन्धककाल द्वारा परभविक आयुको बांधकर स्थित हुआ मन्य एक जीप, ये दोनों समान हैं । इस प्रकार जानकर परमविक आयुके बन्धक कालको जघन्य करके स्थित हुआ जीव, तथा प्रकृति गोपुच्छ अधिक दोनों ही द्रव्योंके समान पूर्वकोटिके त्रिभागमें आयुको बांधकर जलचरोमें उत्पन्न होकर मप्रतिपाठोऽयम् । अ-आ-काप्रतिषु 'बंधभुजमाणा उअ', तापतौ ' बदभुंजमाणाउअ' इति पाठः । २ प्रतिषु 'मूल' इति पाठः।। मप्रतिपाठोऽयम् । अ-आ-का-ताप्रतिषु 'बंधगद्धार चरिमपरमविय 'इति पाठः। ४ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-आ-का-तामतिषु विदो' पति पाः। ५ अ-आ-काप्रतिषु 'दोहि मि, मप्रती दोहिन्मि 'इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy