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२९० छक्खंडागमै वैषणाखंड
(१, २, ४, १७. सगलपक्खेवा परिहायति । एवं परिहाइदण ठिदो च, अण्णेगो तप्पाओग्गउक्कस्सजोगेण उक्कस्सबंधगद्धाए च आउअं बंधिय जलचरेसुप्पज्जिय कदलीघादं कादूण रूवूणुक्कस्सबंधगद्धाए पुव्वणिरुद्धजोगेहि बंधिय एगसमयं पुव्वणिरुद्धजोगादो रूवूणविगलपक्खेवभागहारमेत्तजोगट्ठाणाणि ओसरिदण बंधिय ह्रिदो च सरिसो। एवमादारदव्वं जाव सो समओ तप्पाओग्गाणि असंखज्जाणि जोगट्ठाणाणि ओदिण्णो त्ति । पुणो एदेणेष कमेण विदियसमओ वि असंखेज्जाणि जोगट्ठाणाणि ओदारेदम्बो । एवमुक्कस्सबंधगद्धामेत्तसव्वसमया ओदारेदवा । एवमणेण विधाणेण ताव ओदारेदवो जाव उक्कस्सबंधगद्धामेत्तसव्वसमयाँ जहण्णजोगट्ठाण पत्ता त्ति । पुणो एवमोदरिदण हिदो च, अण्णेगो तप्पाओग्गुक्कस्सजोगेण उक्कस्सबंधगद्धाए आउअंबंधिय जलचरेसुप्पज्जिय कदलीघादं काऊण परभवियाउअं जहण्णजोगेण उक्कस्सबंधगद्धाए च बंधिय बंधगद्धाचीरमसमयहिदो च, सरिसा । पुणो एदेण. परभवियउक्कस्साउअबंधगद्धागुणिदजहण्णजोगट्ठाणपक्खेवभागहारमेत्तसयलपक्खेवेहि ऊणनिमिदिगोवुच्छासु जत्तिया सयलपक्खेवा अस्थि तत्तियमेत्तदव्वं पुथ्वकोडि
इस प्रकार हानि होकर स्थित हुआ जीव, तथा एक दूसरा उसके योग्य उत्कृष्ट योग व उत्कृष्ट बन्धककाल द्वारा आयुको बांधकर जलचरोंमें उत्पन्न होकर कदलीघात करके एक समय कम उत्कृष्ट बन्धककाल तक पूर्व निरुद्ध योगोंसे बांधकर घ एक समय तक पूर्व निरुद्ध योगसे एक कम विकल प्रक्षेपक भागहार प्रमाण योगस्थान उत्तर कर बांधकर स्थित हुआ जीव सदृश है । इस प्रकार तब तक उतारना चाहिये जब तक उसके योग्य असंख्यात योगस्थान उतरकर घह समय प्राप्त होता है । पुनः इसी क्रमसे द्वितीय समयको भी असंख्यात योगस्थान उतारना चाहिये । इस प्रकार उत्कृष्ट बन्धककाल मात्र सब समयोंको उतारना चाहिये । इस प्रकार इस विधानले तब तक उतारना चाहिये जब तक उत्कृष्ट बन्धककाल मात्र सब समय जघन्य योगस्थानको नहीं प्राप्त हो जाते । पूनः इस प्रकार उतरकर स्थित हुआ जीव, तथा उसके योग्य उत्कृष्ट योगले उत्कृष्ट बन्धककाल तक आयुको बांधकर जलचरोंमें उत्पन्न होकर कदलीघात करके परभविक आयुको जधन्य योग और उत्कृष्ट बन्धककाल द्वारा बांधकर पन्धककालके अन्तिम समयमें स्थित हुआ अन्य एक जीव, ये दोनों सदृश हैं। पुनः इस जीवके द्रव्यके साथ जघन्य योगस्थान सम्बन्धी प्रक्षेपक भागहारको परभविक उत्कृष्ट आयुके बन्धककालसे गुणा करनेपर जो प्राप्त हो उतने सकल प्रक्षेपोंसे रहित विकृति गोपुच्छाओंमें जितने सकल प्रक्षेप हैं उतने मात्र द्रग्यको
प्रतिषु ' अण्णेण ' इति पाठ । २ अ-मा-काप्रतिषु — समय ', तापतौ ' समय (या)' इति पाठः ।
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