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________________ २५४) छक्खंडागमै वैयणाखंड ४, २, ४, १६. मेत्तसमयपषद्धेसु किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवहिदाए आवलियाए संखेज्जदिभागमेत्ता समयपबद्धा विगिदिसरूवेण णट्ठा गच्छंति । णवरि एदं दव्वं पगडिसरूवेण णदव्वादो संखेज्जगुणं, उक्कस्सबंधगद्धाए कदलीघादेण घादिदहेट्ठिमाणं गुणिय पुवकोडीए भागे हिदे जं भागलद्धं तत्तो कदलीघादेगखंडायामेण उक्कस्संबंधगद्धाबग्गे भागे हिंदे जं लद्धं तस्स संखेज्जगुणत्तुवलंभादो । एदाणि दो वि दव्वाणि एक्कदो कदे पगदि-विगिदिसरूवेण णट्ठसव्वदव्वमावलियाए संखेज्जदिभागमेत्ता समयपबद्धा होति । एदम्मि दोबंधगद्धामेत्तसमयपबद्धेसु सोहिदेसु आउअस्स उक्कस्सदव्वं होदि । संपहि समयं पडि गलमाणविगिदिगोवुच्छादो समयं पडि दुक्कमाणसमयपबद्धो संखेज्जगुणो त्ति एदं परूवेमो । तं जहा- पढमफालिपढगगोवुच्छभागहारं किंचूणपुवकोडिं कदलीघादखंडसलागाहि ओवट्टिय रूवस्स असंखेज्जदिमागे पक्खित्ते एगसमयपबद्धस्स विगिदिगोउच्छभागहारो आगच्छदि । पुणो तं भागहारं उक्कस्सबंधगद्धाए ओवट्टिय लद्धेण समयपबद्धे भागे हिंदे समयबद्धस्स संखेज्जदिभागमेता विगिदिगोवुच्छा आगच्छदि । समयपबद्धो पुण संपुण्णो । तेण णिज्जरादो आगच्छमाणदव्वं संखेज्जगुणमिदिआउअबंध. बन्धककाल मात्र समयप्रबद्धोंमें क्या प्राप्त होगा, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर आवलीक संख्यातवें भाग मात्र समय प्रबद्ध विकृति स्वरूपसे नष्ट हुए आते हैं। विशेष इतना है कि यह द्रव्य प्रकृति स्वरूपसे नष्ट हुए द्रव्यकी अपेक्षा संख्यातगुणा है, क्योंकि, उत्कृष्ट बन्धककालसे कदलीघात द्वारा धातित अधस्तन अध्वानको गुणित कर पूर्वकोटिका भाग देनेपर जो भागलद्ध हो उससे, कदलीघात सम्बन्धी एक खण्डके आयामका उत्कृष्ट बन्धककालके वर्ग में भाग देनेपर जो लब्ध हो वह, संख्यातगुणा पाया जाता है। इन दोनों ही द्रव्योंको इकट्ठा करनेपर प्रकृति व विकृति स्वरूपसे नष्ट हुआ सब द्रव्य आवलीके संख्यातवें भाग मात्र समयप्रबद्ध प्रमाण होता है। इसे दो बन्धककाल मात्र समयप्रबद्धोंमेंसे कम करनेपर आयुका उत्कृष्ट द्रव्य होता है। अब प्रति समय गलने वाली विकृतिगोपुच्छासे प्रति समय ढौकमान ( उपस्थित होनेवाला) समयप्रबद्ध संख्यातगुणा है। इसकी प्ररूपणा करते हैं। यथा-प्रथम फालि सम्बन्धी प्रथम गोपुच्छाके भागहार स्वरूप कुछ कम पूर्व कोटिको कदलीघातकी खण्डशलाकाओले अपवर्तित कर लब्धमें एक अंकके असंख्यातवें भागका प्रक्षेप करने पर एक समयप्रबद्धकी विकृतिगोपुच्छका भागहार आता है। पुनः उस भागहारको उत्कृष्ट बन्धककालसे अपवर्तित कर लब्धका समयप्रबद्धमें भाग देनेपर समयप्रबद्धके संख्यातवें भाग मात्र विकृतिगोपुच्छा आती है । पर समयप्रबद्ध सम्पूर्ण है। इसीलिये चूंकि निर्जराकी अपेक्षा आनेवाला द्रव्य संख्यातगुणा है, अतः आयुबन्धककालके अन्तिम १ अ.भा काप्रतिषु ' . मेचो समयपबद्धा विद्विदि .' तापतौ ' - मेता समयपनद्धा वि हिदि.' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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