________________
छक्खंडागमे वेयणाखंड
[१, २, १, ३. पवुत्ती ? ण, पईव-सुजिदु-मणीणमप्पप्पयासयाणमुवलंभादो । कथं संकेदणिरवेक्खो सद्दो अप्पाणं पयासदि १ ण, उवलंभादो । ण च उवलंभमाणे अणुववण्णदा, अव्ववत्थावत्तीदो । ण च सद्द। संकेदबलेणेव बज्झत्थपयासओ त्ति णियमो अस्थि, सद्देण विणा सदत्थाणं वाचियवाचयभावेण संकेदकरणाणुववत्तीदों । ण च सद्दे सद्दत्थाणं संकेदो कीरदे, अणवत्थापसंगादो सद्दम्मि अच्छंतीए' सत्तीए परदो उप्पत्तिविरोहादो चणेयंतो एत्थ जोजेयव्यो ।
..........................
समाधान-नहीं, क्योंकि जैसे अपने आपको प्रकाशित करनेवाले प्रदीप, सूर्य, चन्द्र व माणि पाये जाते हैं वैसे ही यहां भी जानना चाहिये।
शंका -संकेतकी अपेक्षा किये बिना शब्द अपने आपको कैसे प्रकाशित करता है ?
सामाधन - नहीं, क्योंकि वैसी उपलब्धि होती है। और वैसी उपलन्धि होनेपर अनुपपत्ति मानना ठीक नहीं है, क्योंकि, ऐसा माननेपर अव्यवस्थाकी आपत्ति आती है। दूसरे, शब्द संकेतके बलसे ही बाह्य अर्थका प्रकाशक हो, ऐसा नियम भी नहीं है, क्योंकि, नाम शब्दके विना शब्द और अर्थका वाच्य-वाचक रूपसे संकेत करना नहीं बन . सकता है । तीसरे, शब्दमें शब्द और अर्थका संकेत किया जाता है, ऐसा मानना भी ठीक नहीं है; क्योंकि, ऐसा माननेपर एक तो अनवस्था दोष आता है और दूसरे, शब्दमें स्वयं ऐसी शक्तिके रहनेपर दूसरेसे उत्पत्ति मानने में विरोध आता है, इसलिये इस विषयमें अनेकान्तकी योजना करनी चाहिये।
विशेषार्थ- यहां नामवेदनाका निर्देश करते समय नामनिक्षेपको अनिमित्तक बतलाया गया है । इसपर यह प्रश्न हुआ है कि यदि नामनिक्षेप अनिमित्तक माना जाता है तो यह कैसे मालूम पड़े कि यह अमुक नाम है । सर्वत्र साधारणतः विवक्षित पदार्थके आधारसे विवक्षित नाम का ज्ञान हो जाता है। किन्तु जब नामनिक्षेपमें नाम शब्दका आधार भूत कोई पदार्थ ही नहीं माना जाता है तो उस नाम शब्दका ज्ञान ही कैसे हो सकेगा? इस प्रश्नका जो समाधान किया है उसका भाव यह है कि जिस प्रकार चन्द्र आदि पदार्थ स्वभावसे स्वप्रकाशक होते हैं उसी प्रकार नाम शब्द भी जानना चाहिये। वह स्वभावसे ही स्वमें प्रवृत्त है, उसे अन्य आलम्बनकी कोई आवश्यकता नहीं है। शब्द स्वतंत्र है, तभी तो शब्दका अर्थके साथ वाच्य-वाचक सम्बन्ध हो सकता है। यदि शब्दमें शब्द और अर्थ दोनोंका संकेत माना जाय तो इससे अनवस्थाका प्रसंग आता है। इसलिये इस विषयमें सर्वथा एकान्त नहीं मानना चाहिये। किन्तु ऐसा समझना चाहिये कि कथंचित् कोई भी शब्द स्वयं प्रवृत्त हुआ है और कथंचित् पदार्थके आलम्बनसे प्रवृत्त हुआ है। यहां नामनिक्षेपकी प्रमुखता है, इसलिये अन्य आलम्बनका निषेध किया है।
१ प्रतिषु · अथवत्तावत्तीदो' इति पाठः। २ अ-काप्रत्योः 'संकेदकरणाणुवृत्तीदो' इति पाठः। ३ प्रतिषु ' अच्चंताए ' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org